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________________ शब्दार्थ 48. अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी ० अंतेवामी थे० स्थविर भ० भगवन्त ना. नाति सं० संपन्न ज. जैसे अ० आठवाशतक में म०१ : सातवा उ० उद्दशे में जा. यावत् वि० विचरते हैं ॥१॥त. तब से वे थे० स्थविर भ० भगवन्त जा. उत्पन्न हुइ स० श्रद्धा जा० उत्पन्न हुवा संशय ज. जैसे गो० गौतमस्वामी जा. यावत् प० पूजते ए० ऐसे व० बोल च० चमर ० भगवन् अ० असुरेन्द्र अं. असुरराजाको क. कितनी अ. अमहिषी १० प्ररुपी अ० आर्य पं० पांच अ० अग्रमहिषी प० प्ररूपी का० काली रा० रात्रि २० रजनी वि. विद्युत् तेणं कालेणं तेणं समएणं समणरस भगवओ महावीरस्स बहवे अंतेवासी थेरा भगवंतो जाइ संपण्णा जहा अटुमे सए सत्तमुद्देसए जाब विहरति ॥ १ ॥ . तएणं से थेरा भगवंतो जाय सढा जाय संसया जहा गोयमसामी जाव पज्जुवा समाणा एवं वयासी-चमरस्सणं भंते ! अमुरिंदरस असुरकुमाररण्णो कइ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ ? अजो ! पंच अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तंजहा-काली, रायी, आई, धर्मोपदेश सुनकर पीछी गई. उस काल उस समय में श्रमण भगवंत की पास रहनेवाले बहुन स्थविर भगवंत जाति संपन्न कुल संपन्न वगैरह आठवे शतक के सातवे उद्देशे में स्थविरों के गुणों का कथन है कहा वैसे गुणों के धारक यावत् तप संयम से आत्मा को भावत हुवे विचरते थे ॥ १॥ उन स्थविर भगवंतों को श्रद्धा यावत् संशय उत्पन्न हवा. इस से श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार . प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायनी चाराप्रसादजी, भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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