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________________ १४८४ अनुवादक-यालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + समएणं इहेव जंबूद्दीवे दी। भारहे वासे वालाए णामं सण्णिवेसे होत्था वण्णा ॥ तत्थणं वालाए सण्णिवेसे तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासगा जहा चमरस्स जाव विहरंति ॥ तएणं ते तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासगा पुबिपि पच्छावि उग्गा उग्गविहारी, संविग्गा, संविग्गविहारी, बहूई वासाई समणोवासगपरियागं पाउणंति २त्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता सर्द्धि भत्ताइं अणसणाए छेदेतिर ता, आलोइय पडिकंता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा जाव उववण्णा ॥ ७ ॥ जप्पभिइंचणं भंते! ते वालाए तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासगा सेसं जहा चमरस्स जाब अण्णे उववज्जति ॥ ८ ॥ अत्थिणं भंते ! ईसाणस्स ३ एवं जहा भक चमरेन्द्र के समान अधिकार वाले विचरते थे, वे तेत्तीस गाथपति श्रवणोपासक पहिले उग्र, उग्र विहारी संविग्न, संविन विहारी बनकर बहुत वर्ष पर्यंत श्रमणोपासकपना पाले बाद एक मास संलेषणा से [ को झोंस कर साठ भक्त अनशन छेद कर आलोचन प्रतिक्रमण करके काल के अवसर में काल करके शक्रेन्द्र देव के त्रायत्रिंशकपने उत्पन्न हुवे ॥ ७ ॥ जिस दिन से उस बालाक सनिवेश के गाथापति श्रमणोपासक यावत् पहिले के चवते हैं अन्य उत्पन्न होते हैं ॥ ८॥ अहो भगवन् ! ईशानेन्द्र के वाय * प्रकाशक राजीबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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