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शब्दार्थ
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4. अनुबादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपीजी..
के सा० शाश्वतनाम ५० प्ररूपे न० नहीं क. कदापि ना० नहीं थे न० नहीं कदापि न० नहीं है जा० यावत् णि नित्य अ० अविछिन्न अ० अन्य च० चवत हैं अ० अन्य उ० उपजते हैं ॥ ४ ॥ सरल शब्दार्थ
देवाणं सासए नामधेजे पण्णत्ते, जं नकदायि नासी नकदायि न भवइ जाव णिच्चे अव्वोच्छित्ति णयट्टयाए अण्णे चयंति अण्ण उववजति ॥ ४ ॥ आत्थिणं भंते ! बलिस्स वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो तायत्तीसगा देवा ? हंता आत्थि से केणट्रेणं भंते! एवं वुच्चइ बलिस्स बरोयणिंदस्स जाव तायत्तीसगा देवा? एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूद्दीवे दीवे भारहेवासे विभेलेणामे सण्णिवेसे होत्था वण्णओ तत्थणं विभेले साणिवेसे जहा चमरस्स जाव उववण्णा ॥ तप्पभिइचणं भंते ! ते
विभेलंगा तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासगा बलिस्स वइरोयाणदस्स सेसं हुवे हैं. जो पहिले कदापि नहीं थे पैसा नहीं, ह है वैमा नहीं, वैसेही नहीं होगा वैसा नहीं यावत् नित्य अविच्छिन्न हैं प्रथम के चवते हैं व दूसरे उत्पन्न होते हैं ? ॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! बलिनामक वैरोचनेन्द्र को क्या वात्रिंशक हैं? अहो गीतम! उत्त काल उस समय में इस अनूद्वीप के भरतक्षेत्रमें विभेल नामक मभिवेश था. बहुत वर्णन योग्य था जैसे चमरेन्द्रक त्रायत्रिशक का अधिकार कहा वैसेही उस विभेलमें आधिकार कहना. उस विभेल सन्निवेश के तेतीस त्रायशिक गाथापति श्रमणापामा उलिनामक वैरोचनेन्द्रके त्रायत्रिंशकपने उत्पन्न हुवे यावत् नित्य व पहिले के चलते हैं तब उनक स्थान दुसार उत्पन्न होते हैं वहां तक
*काशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ