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शब्दार्थ)
सूत्र
भावार्थ
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भवगती
( आकर स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर को वं० वंदन ण० नमस्कारकर ए० ऐसा व० बोले अ० ० भगवन् च० चमर अ० असुरेन्द्र अ० असुरराजाके ता० त्रायास्त्रिंशक देव हं हां अ० है से वह के० कैसे मं० भगवन् ए० ऐसा बु० कहा जाता है ए० एतेही स० सर्व भाव कहना जा० यावत् ए ऐसा बु० कहाता है च० चमर अ० असुरेन्द्र अ० असुरराजाके ता० त्रयस्त्रिंशक दे० देव णो० नहीं इ० यह अर्थ स० समर्थ ए० ऐने गो० गौतम च० चमर अ० असुरेन्द्र अ० असुरकुमारराजाके ता० त्रायत्रिंशक देव भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ २ ता समण भगवं महावीर वंदइ णमंसइ २ ता एवं वयासी अत्थिणं भंते ! चमरस्स असुरिंदरस असुररण्णो तायत्तिसगा देवा ? हंता अस्थि से केrणं भंते ! एवं बुच्चइ एवं तंचैव सव्व भाणियव्वं जाव तप्पभिइंचणं एवं बुच्चइ ॥ चमरस्स असुरिंदरस असुररण्णो तायत्तीसगा देवा ? णो इण्ट्ठे समट्ठे, एवं खलु गोयमा ! चमरस्सणं असुरिंदरस असुर कुमाररण्णो तायत्तीसगाणं
स्वामी को वंदना नमस्कार कर ऐसा बोले कि अहो भगवन् ! चमर नामक असुरेन्द्र को क्या त्रायविंशक हैं ? गौतम' वगैरह सब पूर्वोक्त यावत् उसदिन से त्रायत्रिंशक कराते हैं ! अहो भगवन् ! चमरेन्द्र को क्या पहिले कि देव नहीं थे ? असे गौतम! यह अयोग्य नहीं है क्योंकी चमरेन्द्र के नाम शाश्वत कह
4- दशवां शतकका चौथा उद्देशा
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