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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
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दी० द्वीप कुमार दि० दिशा कुमार उ० उधि कुमार वि० विद्युत्कुमार ६० स्वनित कुमार अ० अभि ० कुमार छ० छके जुल्दोनो तरफ छा० ४७ स ० शतपत्र || २ || के कितने मंत्र भगवन् पु० पृथ्वी काया आ०आ बाल स० शतसहस्र गो० गौतम अ असंख्यात आ० आवास स० शतनहरू जाः यावत् अ० असंख्यात दी दिसा उदहीणं, विज्जुकुमारिंद थणियमग्गीणं ॥ छण्हंपि जुवलयाणं, बावन्तरि मोसयसहस्सा || २ || केवइयाणं भंते पुढविकाइया वास सयसहस्सा प० गोयमा ! असंखेज बास सयसहस्सा १०, जात्र असंखेज्जा जोइसिय विमाणावास सयसहस्सा
* पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र
भुवन
कहे हैं उनमें से दक्षिण में चउम्मालीस लाख व उत्तरमें चालीस लाख, सुवर्ण कुमारके वोहत्तर लाख भुवन उस में से अडतीस लाख दक्षिण में व चौत्तीस लाख उत्तर में, वायु कुमार के छन्नु लाख भुवन उस में से पच्चास लाख दक्षिण में व ४६ लाख उत्तर में, द्वीप, उदधि, दिशा कुमार, विद्युत्कुमार, स्तनित कुमार व अग्निकुमार इन प्रत्येक को ७३ लाख भवन हैं उसमें से ४० लाख दक्षिण में व ३६ लाख उत्तर में हैं. असुरकुमारादि दशों भुवनपतिके सब मीलकर चार क्रोड छ लाख भवन दक्षिण दिशा में और तीन [क्रोड ६६ लाख भुवन उत्तर दिशा में हैं, सब मील कर सातक्रोड वहोतर लाख भुवन भुवनपति के कहे { हैं. ॥ २ ॥ अहो भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवको रहने के कितने स्थान कहे हैं ? अहो गौतम ! पृथ्वी कायिक जीव के असंख्याते स्था कहे हैं, जैसे पृथ्वीकायिक जीव के असंख्यात स्थान कहे हैं वैसेही
पहिला शतकका पांचवा उद्देशा +
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