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________________ शब्दार्थ + हस्ती ते० उस काल ते. उस समय इ. इस जेजंबूद्वीप भा० भरत क्षेत्र में का० काकन्दी गः नगर हो थी व. वर्णन युक्त त• तहां का० काकन्दी न० नगरी ता० तेतीस स. सहायक गा० गाथापति म० श्रमणोपासक प० रहते हैं अ० ऋद्धिवन्त जा. यावत् अ. अपरिभूत अ० जाने जी जीवामीव उ०१ उपलब्ध पु. पुन्यपाप व० वर्णन युक्त जा० यारत् वि. विचरते हैं ॥२॥त. तब ते वे ता० तेनीस स० दस्स असुररणो तायत्तीसगादेवा? ॥ एवं खल सामहत्थी तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूहीवे दीवे भारहे वासे कायंदी णाम णयरी होत्था वण्णओ तत्थणंकायंदीए .. नयरीए तायत्तसिं सहाया गाहावई. समोवासगा परिवसंति, अट्ठा जाव अपरिभूया, अभिगयजीवाजीवा उबलद्धपुण्णपावा वण्णओ जाव विहरंति ॥२॥ तएणं ते तयातीसं भावार्थ भगवन्! चमर नामक अमुरेन्द्र असुर राजाको कया त्रायत्रिंशक देव हैं! हां प्रायत्रिंशक देव हैं. अहो भगवन् ! किस , कारनले ऐना कहागया है, अहो श्यामहस्तिन् ! उस काल उस समय इस जम्बूद्रपिक भरतक्षेत्र में काकैदी नामक नगरी थी. उस काकंदी नामक नगरीमें तेतीस महायके करने वाले कुटुम्बके नायक श्रमणोपामक रहते थे. वे महाऋद्धिांत यावत् अपरिभूत थे. जीया जीवादि नवतत्व जाकार थे, और पुण्यपापका स्वरूपको पहिचानने वाले यावतू विचरतेथे ॥ २ ॥ अब वे तेतीस त्रायधिशक सहायकारी गाथापति 12 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी. *प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी चालाप्रसादजी *
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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