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शब्दार्थ | १०वीर का अं० अंतेवासी मा. श्यामहस्ती अ० अनगार प० प्रकृति भ० भद्रिक ज० जैसे रो रोहा ना०
यावत् उ० अर्ध जा० जानु वि० विचरना है ॥ २ ॥ त० तब से वह सा० श्याम हस्ती अ० अनगार) 0 जा जान स० श्रद्धा जा. यावत् उ० उत्थानसे उ० उठकर जे. जहां भ० भगवन्त गो० गौतम ते तहां उ० आकर भ० भगवन्त गो० गौतम को ति० तीन वक्त ना० यावत् प० पूजते एक ऐसा व० बोले 33 अ. है भं० भगवन् च० चमर अ० असुरेन्द्र अ० असरकुमार ता० त्रायस्त्रिंशक देव ए ऐमे सा. श्याम से
णामं अणगारे पगइभदए जहा रोहे जाव उर्दु जाणू जाव विहरइ ॥ २ ॥ तएणं से सामहत्थी अणगारे जायसड्डे जाव उट्टाए उट्टेइत्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छइ २ ता, भगवं गोयमं तिक्खस्तो जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी आथिणं भंते ! चमरस्स असुरिंदरस असुर कुमाररण्णो ताय
त्तीसगा देवा ? हंता आथि ॥ से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ चमरस्स असुरिंभावार्थ
उस समय में महावीर स्वामीके अंतेवामी प्रकृति भद्रिक प्रकृति दिनीत यावत् रोहा जैसे सब अधिकार}gg
अनुसार श्यामहस्ती नामक अनगार ऊर्ध्न जानु व अधो शिरसे धर्म ध्यान करते हुने विचरते थे ॥२॥ उस | समय में श्यामहस्ती अनगार को प्रश्न पुछने की श्रद्धा उत्पन्न हुई यावत् अपने स्थानसे उपस्थित हुए और
गौतम स्वामीकी पाम आये. आकर भगवान गौतपको तीन आदान प्रदक्षिणा देकर ऐसा प्रश्न कियाकि अहो ।
हर पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र
१ दशा शतक का चौथा उद्देशा gin