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सूत्र
भावार्थ
40 अनुवादक - बालब्रहचारी मुनि श्री अमोलक ऋाजी
० उस काल ते उस समय में वा वाणिज्य न० नगर हो० था व० वर्णन युक्त दू० दूतिपलाश, चे० चैत्य सा० स्वामी स० पधारे जा० यावत् प० परिषदा प० पीछी गइ ते० उस काल ते० उस समय में मं० भगवंत म० महावीर का जे० ज्येष्ठ अं० अंतेवासी ई० इन्द्रभूति अ० अनगार जा० यावत् उ० ऊर्ध्व [जा० जानु वि० त्रिचरते हैं ॥ ९ ॥ ते० उस काल ते ० उस समय में सः श्रमण भ० भगवन्त म० महा
तेणं कालणं तेणं समएणं वाणिषगामे णामं णयेर होत्या, वण्णओ ॥ दूइपलासए चेइए सामी समोसड्डे, जाव परिसा पडिगया || तेणं काळेणं तेणं समएणं समणस्स भग वओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी, इंदभूई णामं अणगारे जाब उड्डुं जाणू जाव विहरइ ॥ १ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी सामहत्थी
तीसरे उद्देशे में देवता की वक्तव्यता कही. इस चौथं उद्देशे में भी इस का स्वरूप कहते हैं. उस काल उस समय में वाणिज्य नामक नगर था उम्र की ईशान कौन में दूतिपलाश नामक उद्यान था. वह भी (वर्णन योग्य था. वहां श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी पधारे परिषदा वंदने का आइ. धर्मोपदेश { सुनकर पीछी गई. उत काळ उस समय में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी का ज्येष्ठ अंतेवासी इन्द्र{भूति नामक अनगार यावत् ऊर्ध्व जानू व अधोशिर से धर्मध्यान करते हुवे विचरते थे || १ | उस काल
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* प्रकाशक : राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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