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4483 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सत्र
भा० भाषा इ० इच्छानुकूल अ० अनभिगृहित मा० भाषा अ० अभिगृहित बो० जानना सं० संशयकारी यो० संस्कारी अः असंस्कारी प० प्रज्ञापिनी एवं यह भा० भाषा न नहीं ए० यह भा० भाषा मो० मृषा ० हां गो० गौतम आ० आश्रय लेंगे तं तैसे जा० यावत् न० नहीं ए० यह भा० भाषा मो० मृषा वह ए० ऐसे भं० भगवन् ॥ १० ॥ ३ ॥
भासा इच्छालोमाय ॥ १ ॥ अणभिग्गहियाभासा, भासाय अभिग्गहमि बोधव्वा ॥ संसकरणी भासा वोयडमव्वोयडाचेव ॥ २ ॥ " पण्णत्रणीणं एसा भासा न एसामोसा ? हंता गोयमा ! आसइस्लामो तं चैव जाव न एसा भासा मोसा ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति | दसम सयस्स तईओ उद्देसो सम्मत्तो ॥ १० ॥ ३ ॥
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१३ याचना करने की भाषा सो याचनी ४ किसी को पूछना सो पृछनी ५ किसी वस्तु का समझाना सो { प्रज्ञापिनी ६ प्रत्याख्यान करवाना सो प्रसाख्यायिनी ७ बोलनेवाले की इच्छानुसार बोलना ८ जिस का अर्थ समझ में नहीं आवे वैसा बोलना डित्थडवित्थवत् ९ समझ में आवे वैसा बोलना घटादिवत् १० जो शब्द बोलने से अनेक अर्थ होवे वैसी भाषा बोलना ११ प्रगट भाषा लोक प्रसिद्ध १२ गंभीर भाषा वगैरह ) १८ प्रकारको भाषा भाषा नहीं होती है ? अहो गौतम ! उक्त अठारह प्रकारकी भाषा मृषा भाषा हीं होती अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं यह दशवा शतक का तीसरा उद्देशा पूर्ण हुवा।।। १०१ शां
4- दशवा शतकका तीसरा उद्देशा
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