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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
०३. पंचमांग विवाह पण्णति ( भगवती सूत्र 40960
११० पीछे बी० व्यतिक्रमे णो० नहीं पु० पहिले वी० व्यतिक्रमे प० पीछे वि० मोहपामे ॥ २६ ॥ आ एजा ? हंता वीईएजा ||५|| अप्पिढियाएणं भंते! देवीमहिट्टियाए देवीए मज्झं मज्झेणं वीजा ? णो इट्टे समट्टे || एवं समिड्डिया देवी समिइयाए देवीए तहेव, महिढिया देवी अपिढियाए देवीए तहे ॥ एवं एक्केके तिििण तिणि आलारगा भाणि - यव्वा, जाव महिड्डियांणं भंते ! वेमाणिणी अप्पियाए वैमाणिणीए मज्झं मज्झेणं बीईएजा ? हंता बीईवएजा ॥ तं भंते ! किं विमोहेत्ता पभू ? तहेव पुविवा वीवत्ता पच्छा विमोहेज्जा, एए चत्तारि दंडगा || ६ || आसरसणं भंते ! धावमा जा सकता है ? अहो गौतम ! जैसे देव के तीन दंडक कहे वैसे ही देव का व देवी की बीच में जाने का तीन दंडक कहना. ऐसे ही असुर कुमार यावत् स्थानित कुमार, वाणव्यंतर ज्योतिषी व वैमानिक का जानना ॥ ५ ॥ अहो भगवन् ! अल्प ऋद्धिवाली देवी क्या महर्द्धिक देवी की बीच में होकर जा सकती है ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं हैं ऐसे ही समऋदिवाली देवी का समऋद्धिवाली देवी की साथ जानना. महर्द्धिक देवी का अल्प ऋदिवाली देवी का ऐसे एक में तीन २ आलापक कहना यात् महद्धिक वैमानिक देवी क्या अल्प ऋद्धिवाली वैमानिक देवी की बीच में होकर जा सकती है ? हां गौतम ! जा सके. अहो भगवन् ! क्या विभ्रम उपजाकर जा सकती है या विभ्रम उपजाये विना जा सकती है।
++ दशवा शतकका तीसरा उद्देशा
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