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शब्दार्थ
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पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र kagit
भिक्षु अ० अन्यतर अ० अकृत्य स्थान . सेवन कर त० उस को ए. ऐसा भ. होवे । ५० पीछे अ० मैं व० चरिम का काल समय में ए. इस ठा० स्थान को आ• आलोचना करूंगा जा० १ यावत् प० प्रतिक्रमण करूंगा त उस ठा० स्थान अ० अनालोचकर ५० प्रतिक्रमण कर जा. यावत् १० ण नहीं है त उसको आ. आराधना त उनठा स्थान को आ० आलोचकर प० प्रतिक्रमण क का० काल क० करे अ० है त. उ. का आ० आराधना ॥ ६ ॥ भि० भिक्षु अ० अन्यतर अ० अकृत्य
समयंसि एयस्स ठाणस्स आलोइस्सामि जाव पडिक्कमिस्सामि, सेणं तस्स ठाणस्स . अणालोइय पडिक्ते जाव णत्थि तरस आराहणा ॥ सेणं तस्स ठाणस्स आलोइय
पडिकंते कालं करेइ अत्थि तस्स आराहणा ॥ ६ ॥ भिक्खूय अण्णतरं अकिच्चट्ठाणं धक होवे वहां तक कहना ॥ ५ ॥ माधु की प्रतिमा के कथन से साधु के प्रायश्चित्त का प्रश्न पूछते हैं. यदि कोई साधु आचरने योग्य नहीं ऐमा स्थान का सेवन करे और उस की आलोचना निदा किये विना काल कर जावे तो उस को उस स्थान की आराधना नहीं होती है. और आलोचना प्रतिक्रमण कर काल कर जाये तो उस को उस स्थान की आराधना होती है. अर्थात् वह आराधक होता है. किसी साधु को अकृस स्थान का सेवन करके ऐसा होवे कि अंत समय में मैं आलोचना करूंगा. परंतु आलोचना किये विना काल कर नावे तो वह आराधक नहीं होता है और आलोचना प्रतिक्रमण करके काल करें ।
दशवा शतकका दूसरा उद्देशा ...
भावार्थ