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4वो० घोसराइ काया वाला चि. त्यजादेह एक ऐसे मा० पास की भि. भिक्षुप्रतिमा णि निर्षिशेषा
भा० कहना ज० जैसे द० दशा श्रुतस्कंध में जा. यावत् अ० आराधिक भ० होवे ॥५॥भि• भिक्षु अ० अन्यतर अ० अकृत्य ठा० स्थान प० सेवनकर त० उस ठा स्थान को अ० विना आलोचकर प० । प्रतिक्रमण कर का० काल क० करे ण नहीं त० उस को आ० आराधना से वह त० उस ठा० स्थानमा को आ० आलोचकर प० प्रतिक्रमण कर का• काल क० करे अ० है त० उस को आ० आराधना भि०
अणगाररस निच्चं गोसटकाए चियत्तदेहे एवं मासिया भिक्खुपडिमा णिरवसेसा भाणियव्वा जहा दसा जाव आराहिया भवइ ॥ ५ ॥ भिक्खूय अण्णयरं अकिञ्चट्ठाणं पडिसेवित्ता सेणं तस्स ठाणस्स अणालोइय पडिकंते कालं करेइ णस्थि तस्स आराहणा, सेणं तस्स ठाणस्स आलोइय पडिकते कालं करेइ अत्थि तस्स आराहणा ॥ भिक्खू
अण्णयरं अकिञ्चट्ठाणं पडिसेवित्ता तस्सणं एवं भवइ पच्छाविणं अहं चरिम काल में भावाथे घेदना वेदते हैं ? अहो गौतम ! सुखरूप वेदना कहते हैं और दुःखरूप वेदना वेदते हैं ॥ ४ ॥ तप से
वेदना का क्षय होता है इसलिये तप का कथन करत हैं. अहो भगवन् ! स्नानादि परिक्रम से वोसराई
हुइ कायावाले व देश ममत्व के त्यागी माशु को क्या एक माम की भिक्ष प्रतिमा होती है ? अहो । | गौतम ! इन बारह भिक्षु प्रतिमा का आकार दशाश्रुत स्कंध म कहा वैसे कहना यावत् आज्ञा का आरा
42 अनुवादक-घालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *