________________
शब्दार्थनारकी भ. भगवन् दुः दुःख वे वेदना वे० वेदे सु० सुख वे. वेदना वेदे अ. अदुःख अ० अमुख वे० है.
वेदना व० वेदे गो० गौतम दु० दुःख वे० वेदना वे० वेदे सु० मुख वे० वेदना वे. वेदे अ० अदुःख V ० असुख वे० वेदना वे० वेदे ॥ ४ ॥ मा० मास की भ० प्रतिमा ५० युक्त अ० अनगार नि० नित्य
5 सीओसिणा॥ एवं वेयणा पदं भाणियव्वं जाव णेरइयाणं भंते ! किं दुक्खं वेयणं वेदेति, सहं व वेयणं वेदेति अदुक्खमसुहं वेयणं वेदति ? गोयमा ! दुक्खंपि वेयणं वेदेति सुहंपि वेयणं
वेदेति अदुक्खमसुहंपि वयणं वेदेति ॥४॥ मासियंणं भंते ! भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स भावार्थ अहो गौतम ! वेदना तीन प्रकार की कही. शीत, ऊष्ण व शीतोष्ण. शीत योनिवाले नेरिये के ऊप्ण म
की वेदना है और ऊष्ण योनिताले को शीत की वेदना है. ऐसे ही चौवीस दंडक में जानना. और भी चार प्रकार की वेदना कही द्रव्य से पद्गल संबंधी, क्षेत्र से नरकादि क्षेत्र संबंधी, कालसे शीतोष्णादि काल संबंधी और भाव से क्रोध शोकादि संबंधी यों चारों प्रकार की वेदना होती हैं. और भी तीन प्रकारकी वेदना कही शारीरिक, मानसिक, शारीरिक व मानसिक. और भी तीन प्रकार की वेदना साता असाता
दोनों के मध्य की. और भी दो प्रकार की वेदना कही. १ अभ्युगम की सो स्वय उादर कर वेदे और औपक्रमिक मो उदय आई हुइ वेदे. और भी दो प्रकार की वेदना निन्दा सो चिच से विपरीत 3 और अनिन्दा, संज्ञावन्त, संझी को दोनों, असंही को अनिन्दा. इस का कथन पनवणाजी के ३५ वे सपद में विस्तार पूर्वक कहा है. यावत् अहो भगवन् ! नरक के जीव मुख की वेदना वेदते हैं या दुःखकी !
पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती)स
दशवा शतक का दूमरा उद्देशा
808