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शब्दार्थ/० १५० प्ररूपी गौ गौतम ति तीन प्रकार की जो योनि-पप्ररूपी सी० शीत उ ऊष्ण सी. शीतोष्ण ए...
ऐस जो योनिपद नि:निरविशेष भा०कहना॥३॥क कितने प्रकार की मं० भगवन् वे०वेदना प गो० गौतम तिः तीन प्रकार की सी० शीत उ ऊष्ण सी० शीतोष्ण ए ऐसे वे०वेदना पद भा०कहना णे.
॥२॥ कइविहाणं भंते ! जोणी षण्णत्ता ? गोयमा ! तिविहा जोणी पण्णत्ता, तं । जहा सीया उसिणा, सीओसिणा, एवं जोणीपदं णिरवसेसं भाणियव्वं ॥ ३ ॥ कइ
विहाणं भंते वेयणा पण्णत्ता ?गोयमा! तिविहा वेयणा पण्णत्ता, तंजहा सीया उसिणा भावार्थ योनि और मंज्ञी मनुष्य, संज्ञी तिर्यंच व देव में शीतोष्ण योनि कही. और भी तीन प्रकार की सचित्त.
अचित्त व मीश्र, नारकी देवता में अचित्त, पांव स्थावर तीन विकलेन्द्रिय असंज्ञी मनुष्य व असंज्ञी तिर्यंवमें तीनों प्रकार की संज्ञी तिर्य व व संज्ञी मनुष्य में मीश्र योनि. और भी तीन प्रकार की योनि कही. संवृता, विवृता, व संवृतश्वृिता, नरक, देव पांच स्थावर में संवृता, तीन विकलेन्द्रिय, असंज्ञो मनुष्य व तिर्यच में विवृता और संज्ञी मनुष्य व तिर्यंच में संवृतविवृता. और भी तीन प्रकार की कुमुदा, शंवा व वंसोपत्ता. कुमुदा तीकरों आदि उत्तम पुरुषों की माता को, शंखा श्री देवी को और वंशीपत्ता गर्भन को. इत्यादि योनियों का कथन सब पनवणा के नववेपद में विस्तार से कहा है ॥३॥ योनिवाले जीव वेदना पाते हैं इसलिये वेदना का अधिकार कहते हैं. अहो भगवन् ! वेदना कितने प्रकार की कही?
बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *