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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
** पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भवगती ) सूत्र
ठि रहकर पु० पहिले के रू० रूप नि० ध्याते म० पीछे के रू० रूप अ० देखते पा० बाजु के रू० रूप अ० अवलोकते उ० ऊर्ध्व रू० रूप उ० विलोकन करते अ अ रू० रूप आ० आलोचते तस को भं० भगवन् किं० क्या इ० ईर्यापथिक क्रिया क० करें सं० सपरायिक क्रिया क० करे गो० गौतम सं० संवृत अ० अनगार वी० संयोग रस्ते में ठि० रहकर त उसको णो० नहीं इ०र्यापथिक क्रिया क० करे मं० सांपरायिक क्रिया क० करे से वह के कैसे भगव ए० ऐना बु कहा जाता है सं० निज्झायमाणस्स, मग्गओ रूवाइं अवयक्खमाणस्स, पासओ रूवाइं अवलोए माणस्स, उड्डुं रुवाई उलोएमाणस्स अहे रुवाई आलोएमाणस्सण तस्सणं भंते ! किं इरिया बहिया किरिया कज्जइ, संपराइया किरिया कज्जइ ? गोयमा ! संवुडस्स अणगारस्स बीइपथे ठिच्चा जाव तरसणं णो इरियावहिया किरिया कज्जइ, संपराइया किरिया कज्जइ प्रश्न पूछते हैं. राजगृह नगरके गुणशील नायक उद्यान में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार करके गौतम स्वामी पूछने लगे कि अहो भगवन् ! आश्रवद्वार को संवरनेवाला व कषायवन्त अन[गार कषाय के उदय से मार्ग में रहा हुवा आगे के रूप का ध्यानकरता है, पीछे के रूप की वांच्छा करता {है, दोनों बाजु व उपर के रूपोंका अवलोकन करता है, उन को क्या कर्मबंध नहीं होनेवाली ईर्यापथिक (क्रिया लगती है अथवा कर्म बंध होनेवाली सांपराधिक क्रिया लगती है ? अहो गौतम ! कषायवन्त
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दशवा शतक का दूसरा उद्देशा