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________________ शब्दार्थना . ज्ञान दर्शन वाले अ० अरिहंत जि० जिन के० केवली अ० चाहिए उतना व० कहना से ऐसे ही 9 भं० भगवन्.॥१॥४॥ क० कितनी भं० भगवन् पु० पृथ्वी ५० प्ररूपी मो० गौतम स० सात पु० पृथ्वी ५० प्ररूपी र० रत्न प्रभा जा० यावत् त० तमतम इ० इस भं• भगवन् र० रत्नप्रभा पृथ्वी में क० कितने नि० नरकावास नाण दंसण धरे अरहा जिणे केवली अलमत्थुत्ति वत्तव्वं सिया सेवं भंते भंतेत्ति पढमसए चउत्थोडेसो सम्मत्तो ॥ १ ॥ ४ ॥ कइणं भंते ! पुढवीओ पण्णत्ताओ ! गोयमा ! सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ, तंजहार यणप्पभा जाव तमतमा । इमीसेणं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए कइ निरयावास वह वैसे ही है अन्यथा नहीं है. यह पहिला शतकका चौथा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥१॥४॥ x है पहिले उद्देशे के अंत में अरहंतादिक कहे वे पृथ्वी पर हुवे इस लिये इस उद्देशे में पृथ्वी संबंधी प्रश्न करते हैं. अहो भगवन् ! कितनी पृथ्वी कहीं ? अहो गौतम ! पृथ्वी सात कहीं उन के नाम १ रत्नप्रभा इस में रत्नों की प्रभा २ शर्कर प्रभा इस में कंकरों की प्रभा ३ बालु प्रभा जिस में बालु की कान्ति ४ पंक प्रभा जिस में अशुचि रूप कर्दम की कान्ति ५ धूम प्रभा जिस में धूम्र सरिखी कान्ति १६ अंधकार की प्रभा सो तम प्रभा और ७ महा अंधकार की प्रभा. सो समवन प्रभा. अहो भगवन् ! 488 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र manawrwwwwwwwwwww 43 पहिला शतक का पांचवा उद्देशा
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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