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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
4 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
अं० चरिम शरीरी स० सर्व दुःख का अं० अंतकिया क० करता है कर करेगा स० अर्व वे० वे ८० ( उत्पन्न ना० ज्ञान दं० दर्शन वाले अ० अरिहंत जिंο जिन के० केवली भं० होकर त० पीछे सि० सिझते जा० यावत् अं० अंत क० करेंगे इं० हां गो० गौतम ती० अतीत काल में अ अनंत सा शाश्वत {जा० यावत् अं० अंत करेंगे ॥ १२ ॥ से० वह भं० भगवन् उ० उत्पन्न ना० ज्ञान दर्शन वाले अ० अरिहंत जि० जिन के० केवली अ० चाहिए उतना व० कहना ० हां गो० गौतम उ० उत्पन्न
दंसण धरा अरहा
मंतं करिंसुवा, करिंतित्रा, करिस्संतिवा ॥ सव्वेते उप्पण्ण नाण जिणे केवली भवित्ता, तओ पच्छा सिज्झंति जाव अंतं करिस्सतिवा ? हृता गोयमा ! तीत मणंतं सामयं जाव अंतंकरिस्संतिवा ॥ १२ ॥ सेणूणं भंते ! उप्पण्ण नाण सण धरे अरहा जिणे केवली अलमत्युत्ति वत्तव्यं सिया ? हंता गोयमा ! उप्पण्ण
काल के अनंत शाश्वत समय में सिझते हैं यावत् सब दुःखों का अंत करते हैं ॥ १२ ॥ अहो भगवन् ! ( उत्पन्न ज्ञान दर्शन के धारक, अरिहंत जिन केवली ही संपूर्ण ज्ञानवाले हुवे! उन से अधिक ज्ञान प्राप्त करने को अन्य कोई भी समर्थ नहीं है ? हां गोतम ! उत्पन्न ज्ञान दर्शन के धारक अरिहंत जिन केवली ही संपूर्ण ज्ञानवाले हैं अन्य कोई इस से अधिक ज्ञानी नहीं है. अहो भगवन् ! आपने कहा
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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