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शब्दार्थ | * {काल जा० यावत् अं०- अंत किया है० हां गो० गौतम जा० यावत् अं० अंतकिया ए० ये ति०तीन आ आलापक भा० कहना छ० छन्नस्थ को ज० जैसे ण० विशेष सि० सिझें सि० सिझते हैं सि सिझेंगे अतीत काल में अ० अनंत मा० शाश्वत स० काल १० वर्तमान सा० अनंत सा० शाश्वत स समय जे० जो के०कोई अं०अंत करने वाले गोयमा सिज्झिसु जाव अंतंकरिंसु एते तिन्नि आलावगा भाणियव्वा छउमत्थस्स जहा नवरं सिज्झंसु सिज्झंति,सिज्झिरसंति ॥ ११ ॥ सेणू गं भंते! तीतमनंतं सासयं समयं पडुप्पन्नंवा सासयसमयं अणागय मणतंत्रा सासयं समयं । जे केइ अंत करावा अंतिम सरीरियावा सव्व दुक्खाण
॥ ११ ॥ से० वह मं० भगवन् ती शाश्वत स० समय अ० अनागत अ०
सूत्र
भावार्थ
4343 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
भगवन् ! केवली अतीत शाश्वत काल में सिझे, बुझे यावत् सब दुखों का अंत किया ? हां गौतम ! सिझे यावत् अंत किया. ऐते अतीत, अनागत व वर्तमान के तीन २ आलापक जानना जैसे छास्थ का कहा वैसे ही केवली का जानना मात्र विशेषता यह है कि अतीत काल में सिझें, वर्तमान में सिझते हैं। और आगामिक में सिझें ॥ ११ ॥ अहो भगवन् ! अतीत काल में अनंत शाश्वत समय में वर्तमान का भी शाश्वत समय में, अनागत काल के अनंत शाश्वत समय में जो कोई अंत करनेवाले अन्तिम शरीरीने सब दुःखों का अंत किया करते हैं व करेंगे वे क्या सब उत्पन्न केवल ज्ञान, केवल दर्शन के धारक अरिहंत केवली हुने पीछे सिझते हैं यावत् सब दुःखों का अंत करते हैं ? हां गौतम ! अतीत
पहिला शतक का चौथा उद्देशा
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