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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
हे जा. यावत् स. सब दु. दुःखों का अं० अंत क० किया क करते हैं क करेंगे से वह ते. इम इलिय गो० गोतम जा० यावत् समबद० दुःखों का अं० अंतकिया प.वर्तमान में ए. ऐसे न० विशेष सिक सिझते हैं भा० कहना अ० अनागत में ए. ऐन विशेष सि. पिझेंगे भा० कहना ॥१॥ ज० जैसे छ० छद्मस्थ त तसे अ० अवधि ततैसे प. परमावधि ति० तीन २ आ. आलापक भा० कहना ॥ १०॥ के. केवला भं० भगवन् म. मनुष्य ती. अतीत काल में अ० अनंत सा० शाश्वत स०
ते उप्पन्न नाणदंसणधरा अरहा जिणे केवली भवित्ता तओ पच्छा सिझंति, बझंति, मुच्चंति, परिनिव्वायंति, जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिसुवा करितिवा करिस्संलिबा से तेणटेणं गोयमा ! जाव सब्ब दुक्खाणमतं करिंसु । पडुपन्नेवि एवं चेव, नवरं सिझंति भाणियव्वं. अणागएवि एवंचेव, नवरं सिज्झिस्संति भाणियव्वं ॥९॥ जहा छउमत्थो तहा आहोहिओवि, तहा परमोहिओवि तिन्नितिन्नि आलावगा भाणियव्या
॥ १० ॥ केवलीणं भंते ! मणूसे तीतमणतं सासयं समयं जाव अतं करेंसु ? हंता धारक जिन हुवे पीछे लिझते हैं, बुझते हैं व निर्माण को प्राप्त होते हैं यावत सब दुःखों का अंत किया, करते हैं व करेंगे. इसलिये अहो गौतम ! सब दुःखों का अंत किया वहां वर्तमान काल में मिझते हैं व भविष्य काल में निझो कहना शेष सब पहिले जैसे कहना ॥१॥ जो छमस्थ का कहा *वैने ही अवधि व परम अवधिज्ञानी का जानना ॥ १० ॥ अब केवल ज्ञानी की पृच्छा करते हैं.
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदवसहार
भावार्थ
ज्वालाप्रप्तादजी*