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4स काल के०संपूर्ण संयम से के०संपूर्ण संवर से के०संपूर्ण ब्रह्मचर्य से के०संपूर्ण प्रवचन माता से सि. सिझें ।
दु० बुझें जा० यावत् स० सर्व दु० दुःख का अं० अंतकिया गो० गौतम नो० नहीं इ० यह अर्थ स०समर्थ से वह के• कैसे भं० भगवन् ए. ऐसे वु० कहा जाता है जा. यावत् अं० अंत का किया गो०१४ गौतम जे० जो के० कोइ अं० अंत करने वाले अ० चरम शरीरी स० सर्व दु. दुःखों का अं० अंत क०१36 किया क० करते हैं क० करेंगे म० सब ते वे उ०. उत्पन्न ना० ज्ञान दर्शन वाले अ० अरिहंत जि० 2 जिन के० केवली भ० होकर त० पीछे सि० सिझते हैं बु० बुझते हैं मु० मुक्त होते हैं प० निर्वाणपाते
केवलेणं संवरेणं, केवलेणं बंभचेरवासेणं, केवलीहिं पवयणमायाहिं, सि.
झिसु, बुझिन जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिंसु ? गोयमा ! नो इण? समटे । है सेकेण?णं भंते ! एवंवुच्चइ, तंचेव जाव अंतं करिसु ? गोयमा ! जेकेइ अंतकरावा
अंतिम सरीरियावा, सव्व दुक्खाणमंतं करिसुवा, करािंतिवा, करिस्सतिवा, सव्वे भावार्थ केवल संवर से, केवल ब्रह्मचर्य से व केवल आठ प्रवचन माता से सिझें, बुझें. यावत् सब दुःखों का अंत
किया ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं हैं. अहो भगवन् ! किस कारन से छमस्थ मनुष्य सिझें, बुझें नहीं यावत् सब दुःखों का अंत किया नहीं ? अहो गोतम ! संसार के अंत करनेवाले
चरम शरीरी ने सब दुःखों का अंत किया, करते हैं, व करेंगे. वे सब केवलज्ञान, केवलदर्शन के
4848 पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र ११
पहिला शतक का चौथा उद्देशा