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भावार्थ
4. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
है. हां गो० गौतम त० तैसे 10 कहना १० यह भं भगवन् पो० पुगल अ अनागत में अ. अनंत मा० शाश्वत स. काल भ० होगा इ. ऐमा व० कहना हं० हां गो० गौतम तं० तैसे ही उ० कहना ए. ऐसे खं० स्कन्ध में ति तीन आ० आलापक ॥७॥ ए. एसे जी जीव में ति. तीन आ० आलापक भा० कहना ॥ ८॥छ. छद्म भं. भगवन् म. मनुष्य अ० अतीत काल में अ. अंन्त मा. शाश्वत
अणागयमणतं सासयं समयं भविस्सतीति वत्तव्वं सिया? हंता गोयमा ! तंचेव उच्चारयव्वं ॥ एवं खंधेणवितिण्णि आलावगा ॥ ७ ॥ एवं जीवेगारी तिाण आलागा भाणियव्वा ॥ ८ ॥ छउमत्थेणं भंते ! मणसे ती मर्गत
मंजमेणं, F कहना ? हां गौतम ! वर्तमान काल में सब पुद्गल शाश्वत है. अा भान् : अनागत काल में सब
पुद्गल अनंतपना से शाश्वत रहेंगे? हां गौतम ! मन पुद्गल गाश्चत रहेंगे. (मण पदकका योग मीलने से स्कंध होता है उन पर भी तीन आलापक जानन ॥ ५॥ पदल का प्रतिपक्ष जीव है इस लिये जीव का प्रश्न करते हैं. अहो भगःन् ! अतीत काल में जीव था? अहो गौतम : जैम तीन काल के तीन आलापक पुद्र के कह बैनी भन, भविष्य व वर्तमान काल की अपेक्षा मे जीव के भी तीन आ-,
लापक जानना ॥ ८ ॥ अब जीव के अधिकार में उद्देशा के अंत तक यथोत्तर प्रधान जीव की वक्तव्यलता कहते हैं. अहो भारन ! छद्मम्थ मनुष्य अतीत, अनंत व शाश्वत काल में संपूर्ण शुद्ध मंयम मे,
१ १ इसमें केवळ ज्ञान व अवधिज्ञान ऐसे दानोंज्ञान रहितको लना क्योंकि अवधिज्ञानका अधिकार आगेआंवगा *
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवमहायजी ज्वालाप्रसादजी *