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________________ सूत्र 48 पंचांग विवाहपण्णत्ति ( भगवती ) भावार्थ | इंदा तहेव णिरवसेसं ॥ णेरइया जहा अग्गेयी, वारुणी जहा इंदा, वायव्या जहा अग्गेयी, सोमा जहा इंदा, ईसाणी जहा अग्गेयी, विमलाए जीवा जहा अग्गेयी, अजीवा जहा इंदा, एवं तमाएवि णवरं अरूवी छव्विहा अद्धा समओ न भण्णइ ॥ ६ ॥ कइणं भंते सरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचसरीरा पण्णत्ता तंजहा - ओरालिए ॥५॥ जमा, वारुणी, व सोमा, इन्द्रा जैसे कहना और नैऋती, वायव्या, व ईशानिका, अग्नेयी जैसे कहना. त्रिमला में जीव अग्नेयी जैसे और अजीव इन्द्रा जैने. ऐसे ही तथा का जानना. परंतु काल नहीं ग्रहण करना ÷ ॥ ६ ॥ अहो भगवन् ! शरीर के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! शरीर के पांच भेद { कहे हैं. १ उदारिक २ वैक्रेय ३ आहारक ४ तेजस व ५ कार्माण. उदारिक शरीर की अवगाहना जवन्य अंगुल का असंख्यातवा भाग उत्कृष्ट हजार योजन की वैक्रेय की जघन्य अंगुल का असंख्यातवा भाग { उत्कृष्ट एक लक्ष योजन की आहारक की जघन्य मुंडा हाथ उत्कृष्ट एक हाथ तेजस कार्माण की जघन्य अंगुल का असंख्यातवा भाग उत्कृष्ट सब लोक प्रमाण, उदारिक मे ६ संस्थान वैक्रेय में समचौरस व ÷ विमला दिशा में सिद्ध आश्री अनेन्द्रिय के प्रदेश हैं और तमा दिशा में केवली समुद्घात से अनेन्द्रिय के प्रदेश लिये हैं. तमा दिशा में सूर्य का प्रकाश नहीं होने से काल नहीं लिया गया है परंतु विमला दिशा में सूर्य का प्रकाश नहीं होने पर भी सूर्य के किरणों का मेरु पर्वत के स्फटिक काण्ड में संक्रमण होता है इस से काल लिया गया है. * दशत्रा शतक का पहिला उद्देशा १४५९
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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