________________
१४५८
भावार्थ
१.3 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी +
तंजहा-रूवी अजीवाय अरूबी अजीबाय । जे रूबी अजीवा ते चउन्विहा पण्णत्ता, तंजहा खंधा, खंधदेसा, खंधप्पएसा, परमाणुपोग्गला ॥ जे अरूवी अजविा ते सत्त विहा पण्णप्ता, तंजहा नोधम्मस्थिकाए, धम्मत्थिकायस्स देसे, धम्मत्थिकायस्स पएसा । एवं अधम्मत्थिकायस्सवि, जाव आगासत्थिकायस्स पएसा ॥ अद्धासमए, विदिसासु
नत्थि, जीवा देसे भंगो होइ सव्वत्थ ॥५॥ जमाणं भंते ! दिसा किं जीवा ? जहा कहना. क्यों कि लोककी व्यापकावस्था वैसी है, और अनेन्द्रिय छोडकर जीवका जहां देश वहां असंख्यात प्रदेश हात हैं और समुद्घात के समय अनेन्द्रिय के भी एक क्षेत्र प्रदेश में एक वचन ही कहना. और अग्नयी में असंख्यात अवगाहन प्रदेश रहे हुवे हैं इस से प्रथम भांगा छोडकर शेष दो २ भांगे पाते हैं.. बहुत एकेन्द्रिय के प्रदेश व एक बेइन्द्रिय का प्रदेश अथवा बहुत एकेन्द्रिय के प्रदेश बहुत बेइन्द्रिय के प्रदेश. ऐसे ही एकेन्द्रिय तेइन्द्रिय, एकेन्द्रिय चतुरेन्द्रिय, एकेन्द्रिय पंचेन्द्रिय, व एकेन्द्रिय अनेन्द्रिय ऐसे में दश भांगे होते हैं यो जीव के २५ भांगे होते हैं. अब अजीब के दो भेद रूपी अजीत व अरूपी अजीव उनमें रूपी अजीव के चार भेद स्कंध, स्कंध देश, स्कंध प्रदेश व परमाणु पुद्गल. और अरूपी अजीवके सात भेद उन में धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय व आकाशास्तिकाय का स्कंध नहीं पाता है परंतु इन तीनों के देश, प्रदेश ऐमे छ पाते हैं. और सातवा काल विदिशा में नहीं है और जीव देशमें भागा सर्वच होता है.
AnimM प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वामसादजी.