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4.9 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 809
अजीवा से चउन्विहा पण्णत्ता, तंजहा खंधा खंधदेसा, खंधप्पएसा, परमाणुपोग्गला॥ जे अरूवी अजीवा ते सत्तविहा पण्णत्ता,तंजहा नो धम्मत्थिकाए धम्मत्थिकायस्स देसे, धम्मत्थि यस्म पएसा नो अधम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकायस्स देसे, अधम्मत्थिकायस्स पएसा ॥ नो आगासस्थिकाए आगासत्थिकायरस देसे, आगासत्थिकायस्स पएसा, अहासमए ॥ ४ ॥ अग्गेयीणं भंते ! दिसा किं जीवा जीवदेसा जीवप्पएसा पुच्छा? गायमा ! णो जीवा, जीवदेसावि, जीवप्पएसावि, अजीवावि, अजीवदेसावि, अजीव
प्पएसावि ॥ जे जीवदेसा ते णियमा एगिदियदेसा, अहवा एगिदिय देसाय बेइंदियस्स अजीव व अरूपी अजीच. उस में रूपी अजीव के चार भेद स्कंध, स्कंध देश, स्कंध प्रदेश व परमाणु पुद्गल. और अरूपी अजीव काय के सात भेद. संपूर्ण धर्मास्तिकायाका स्कंध पूर्व दिशा में नहीं है क्योंकि यह सर्व लोक व्यापी है इन से यह पूर्व दिशा में नहीं है परंतु धर्मास्तिकाय का देश विभाग व प्रदेश विभाग यह दोनों ही पूर्व दिशा में हैं. ऐसे ही अधर्मास्तिकाय का स्कंध नहीं है. परंतु देश व. प्रदेश है, ऐसे ही आकाशास्तिकाय का स्कंध नहीं है परंतु देश व प्रदेश है और काल में सात बोल हैं ॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! क्या अग्नेयी दिशा में जीव, जीव देश यावत् अजीव प्रदेश हैं ? अहो गौतम ! अग्नेयी एक प्रदेशी होने से इसमें संपूर्ण जीव का समावेश नहीं होता है इस से वहां जीव नहीं है परंतु जीव देश व
प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ