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शब्दार्थ
48 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 4.88
ज०यमा ने नैऋती वा वारुणी वा०वायव्या सो सोमा ई० ईशानिका वि०विमला तम्तमा।३||सरल शब्दार्थ
चारुणीय वायव्वा ॥ सोमा ईसाणीया, विमलाय तमाय बोधव्वा ॥ १ ॥ ३ ॥ इंदाणं भंते ! दिसा किं जीवा, जीवदेसा, जीवप्पएसा; अजीवा, अजोवदेसा, अजीवप्पएसा? गोयमा । जीवावि तं चेव जाव अजीवप्पएसावि ॥ जे जीवा ते नियम एगिदिया, बेइंदिया, जाव पंचिंदिया, अणिदिया ॥ जे जीवदेसा ते नियम एगिदियदेसा जाव अणिंदियदेसा ॥ जे जीवप्पएसा ते णियमं एगिदियप्पएसा जाव अणिदियप्पएसा ॥
जे अजीवा ते दविहा पण्णत्ता, तंजहा रूबी अजीवा, अरूबी अजीवाय । जे रुवी से दिशा गाडा के ऊंध के आकारवाली हैं चार विदिशाओं मोतियों की लड के आकारवाली हैं और ऊंची नीची रुचक के आकारवाली हैं ॥ ३ ॥ अहो भगवन् ! इन्द्रादिशा में क्या जीव हैं, जीव देश हैं जीव प्रदेश हैं? अथवा अजीव हैं. अजीव देश हैं व अजीव प्रदेश हैं ? अहो गौतम ! इन्द्रादिशा में जीव है यावत् अनीव प्रदेश हैं. क्योंकि दिशाओं में जीव व अजीव का अस्तिपना रहता है जिस से जीव यावत् 200 अजीव के प्रदेश होते हैं. अब जो जीव होते हैं वे निश्चय ही एकेन्द्रिय बेइन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय व अने-37 न्द्रिय होते हैं जो जीव देश हैं. वे निश्चय ही एकेन्द्रिय यावत् अनेन्द्रिय के जीव देश हैं और जो प्रदेश हैं 3 वे निश्चय ही एकेन्द्रिय यावर अनेन्द्रिय के प्रदेश हैं. और जो अजीव होते हैं उस के दो भेद, रूपी
486248 दशा शतकका पहिला उद्देशा84881
भावार्थ