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शब्दाथे
पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती ) सूत्र
: ॥दशम शतकम् ॥ दि० दिशा संः संवृत अ० अनगार आ० आत्म ऋद्धि सा०श्याम हस्ती दे देवी ससभा उ० उत्तर अ० अंतरद्वीप द० दश में स० शतक में चो० चौतीस रा० राजगृह जा. यावत् ए. ऐसा व० बोले 40
१४५३ कि क्या भ० भगवन् पा० पूर्व दिशा ५० कहाती है गो० गौतम जी० जीव अ० अजीव किं. कैसे भ० भगवन् प० पश्चिम १० कहाती है गो गौतम एक ऐसे दा० दक्षिण ९० ऐसे उ° उत्तर ए. ऐसे
दिसि संवुड मणगारे, आइड्डी सामहत्थि देवि सभा; उत्तरअंतरदीवा, दसमंमि सयंमि चोत्तीसो! रायगिहे जाव एवं वयासी किमियं भंते ! पाईणेत्ति पवुच्चइ !
गोयमा । जीवा चेव, अजीवा चेव ॥ किमियं भंते ! पडीणोत्त पवुच्चइ ? गोयमा ! । नववे शाक में क्रिया का अधिकार कहा, अब इस शतक के पहिले उद्देशे में दिशि का कथन करते हैं. इस शतक में चौतीस उद्देशे कहे हैं. १ प्रथम उद्देश में दिशाओं का कथन किया है २ दूसरे में संवृत.. अनगारका३ तीसरे में आत्तऋद्धिमे देवकावासांतर अतिक्रमनका ४ चौथे में श्यामहस्ती साधु के प्रश्नोत्तर५ } 3 पांवो में चमरेन्द्र की अग्र महिषियों का कथन ६ छ8 में सुधर्मा सभा का वर्णन और सात से ३४ तक उत्तर दिशा के तर द्वीपका कथन है. इनमें से अब प्रथम उद्देशा कहते हैं. राजगृह नगर के गुण शील | नामक उद्यान में भावां महावीर स्वामी को भगवान् गौतम स्वामी वंदना नमस्कार कर प्रश्न पूछने | लगे कि हो भगवन् ! पूर्व दिशा किसे कहना ? अहो गौतम ! जीव व अजीव रूप पूर्व दिशा है ऐसे ही
387 १०४ दशा शतकका पहिला उद्देशा
भावार्थ