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११ अनुवादक-बालब्रह्मवारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी go
एवं दाउ का एणवि, एवं वणस्सइ काइएणवि, जाव वणस्सइ काइएणं भंते ! वणस्सइ काइयं च आणममाणेवा पुच्छा ? गोपमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए, ॥ ९ ॥ वाउ काइएणं भंते ! रुक्खस्स मूलं पवालेमाणेवा, पवाडे. माणेवा, कइकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए सियचउकिरिए, सियपंचकिरिए ॥ एवं कंदं एवं जाव बीयं पवालेमाणेवा पुच्छा ? गोयमा ! सियतिकिरिए सियचउ किरिए, सिथपंचकिरिए ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ॥ नवम संयस्स चउत्तीसइमो उद्देसो
सम्मत्तो ॥ ९ ॥ ३४ ॥ नवमं सयं सम्मत्तं ॥९॥ व क्वचित् पांच यों तेउ, वायु, व वनस्पति की साथ जानना जैसे पृथ्वी काय आश्री क्रियाओं कही वैसे ही अप् , तेऊ, वायु व वनस्पति आश्री क्रियाओं का जानना ॥९॥ अहो भगवन् ! वायु काय वृक्षके मूल गिराते हुो कितनी क्रियाओं करे ?अहो गौतम! क्वचित् तीन क्वचित् चार क्वचित् पांच ऐसे ही कंद यावत् धींज को गिराते हुवे काचित् तीन क्वचित् चार व क्वचित् पांच क्रियाओं करे. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं. यह नववा शतक का चौतीसका उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ १ ॥ ३४ ॥ यह नववा शतक
हुवा ॥९॥
* प्रकाशक-राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावाथ