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हणइ णो इसिपि हणइ ॥ से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ जाव णो इसिपि हणइ ? गोयया! तस्सणं एवं भवइ एवं खलु अहं एग इसि हणीीम सेणं एगं इसिं हणमाणे अणंता जीवा हणइ से तेण?णं निक्लेवओ ॥ ४ ॥ पुरिसेणं भंते ! पुरिसं हणमाणे किं पुरिस वरेणं पुढे णो पुरिसवरेणं पुढे ? गोयमा ! णियमणं ताव पुरिसवेरेणं पुट्टे, अहवा पुरिसवेरणय णो पुरिसवेरेणय पुढे, 'अहवा पुरिसवेरेणय णो
पुरिसवेरोहिय पुट्टे, एवं आसं, एवं जाव चिलुलगं जाव अहवा चिल्ललगं वरेणय णो भावार्थ ऋषि हणता है या नो ऋषि हणता. है ? अहो गौतम : ऋषि हणता है और नो ऋषि
भी हणता है. अहो भगवन् ! यह किस तरह ? अहो गौतम ! उस को ऐमा विचार होवे कि मैं एक , ऋषि मारता हूं उस ऋषि को मारता हुवा उस के आश्री अनंत जीवों की घात करता है. क्योंकि ऋषि अनंत जीवों के पालक होते हैं अनेक जीवों को उपदेश देकर अनंत जीवों की दया करानेवाले होते हैं और यदि मुक्ति में नहीं जावेतो वह मरकर अविरति होता है वहां अनंत जीव की घात होते. इससे ऋषिका घातक अनंत जीवों का घातक होना है ॥ ४ ॥ अहो गवन् ! पुरुष की घात करनेवाला पुरुष क्या * पुरुष वैर से स्पर्शमा नो पुरुष वैर से स्पर्शा? अहो गौतम ! पुरुष की घात की इस से पुरुष वैर से 1 निश्चयही स्पर्शा पातु यदि एक अन्य जीव की साथ में घात हुई होवे तो एक नो पुरुष वैर से स्पर्शा और है "
4242 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
नवधा शतकका चौतीमचा उद्दशा