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भावार्थ
43 पंचमांग विवाह पण्णति ( भगवती ) सूत्र
ते काणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं वयासी पुरिसेणं भंते! पुरिसं हणमाणे किं पुरिसं हणइ णो पुरिसं हणइ ? गोयमा ! पुरिसंविहणइ णो पुरिसं पिहणइ ॥ से केणट्टेणं भंते ! एवं वृच्चइ पुरिमंपि हणइ णो पुरिसंपि हणइ ? गोयमा ! तस्सणं एवं भवइ, एवं खल अहं एग पुरिसं हणामि, सेणं एगं पुरिसं हणमाणे अणेगा जीवा हणंति से तेणट्टणं जात्र णो पुरिसंपि हणइ || १ || पुरिसेणं भंते ! आसं हणमाणे किं आसं हणइ असे हणइ ? गोयमा ! आसंपि हृणइ णो आसेवि हणइ ॥ से केणट्टेणं अट्ठो उस काल उस समय में राजगृह नामक नगर था. उस के गुणशील नामक चैत्य में श्री श्रमण भगवंत { महावीर को वंदना नमस्कार कर श्री गौतम स्वामी पूछने लगे कि अहो भगवन् ! पुरुष पुरुष की घात करता हुवा क्या पुरुष को हणता है या नो पुरुष को हणता है ? अहो गौतम ! पुरुष को हणता पुरुषको {हणता है और नो पुरुष ( पुरुष सित्रा अन्य ) को भी हणता है. अहो भगवन् ! यह किस तरह ? अहो गौतम ! उस को ऐसा विचार होवे कि मैं एक पुरुष को मारता हूं इस तरह वह एक पुरुष को हणता {हुवा इस के शरीर आश्रित अनेक कृमि आदि जीवोंकी घात करता है. इससे ऐसा कहा गया है कि पुरुषको {हणता है और न पुरुष को भी हणता है ॥ १ ॥ अहो भगवन्! पुरुष अश्व की घात करता क्या अश्व को हणता {है या नो अश्व को हणता है ? अहो गौतम ! अश्व को हणता है और नो अश्व को भी हणता है. अहे
488+ 48 नववा शतकका चौतीसवा उद्देशा
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