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शब्दाथ भगवन् ज० जमाली अ० अनगार का० काल के अवसर में का० काल करके लं० लंतक दे देवलोक में ।
ते० तेरह सा मागरोपम की ठि० स्थिति में दे देवकिल्विषी में दे देवकिल्विषीपने उ० उत्पन्न पहुवा गो गौतम ज० जमाली अ० अनगार आ० आचार्य प्रत्यीक उ० उपाध्याय प्रत्यनीक आ०१00
आचार्य उ० उपाध्याय के अ० अपयश करने से अ० अवर्णवाद बोलने से अ अपकीर्ति करने से ब बहुत वर्ष सा० श्रामण्य ५० पर्याय पा. पालकर अ० अर्धमांस की सं० संलेखना से ती. तीस भक्त अ से अनशन छे० छेदकर त० उस अ० अर्थ को अ० विना आलोचकर प० प्रतिक्रमणकर का० काल के
गोथमा ! जमालीणं अणगारे आयरियपडिणीए उवज्झाय पडिणीए आयरिय उवज्झायाणं अयसकारए अवण्णकारए जाव वुप्पाएमाणे बहूई वासाइं सामण्ण परियागं पाउणइ २ त्ता अद्धमासियाए सलेहणांए तीसं भत्ताई अणसणाई छेदेइ २ त्ता तस्स
पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती ) सत्र 20982
30 नवधा शतकका तेत्तीसवा उद्देशा 988
तो अहो भगवन् ! कैसे किल्विषी देवपने उत्पन्न हुवा ? अहो गौतम ! जमाली अनगार आचार्य
का प्रसनीक उपाध्याय प्रत्यनीक आचार्य उपाध्याय के अपयश करनेवाला निंदा करनेवाला, यावत् 3 लोकों को मिथ्या उपदेश देनेवाला था. इस से बहुत वर्ष तक साधु की पर्याय पालकर उस स्थान की
आलोचना प्रतिक्रमण किये विन कालके अक्सरमें काल कर लंतक देवलोकमें तेरह सागरोपमकी स्थितिसे ।।
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