________________
शब्दार्थ
१ अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी gov
4वाले अ• अवर्णवाद बोलने वाले अ. अपकीन करने वाले ५० बहुत अ० असद्भाव उ. उद्भव से मि० मिथ्याभिनिवेशिक से अ. आत्मा को बु. विरुद्ध ग्रहण करता वु. दुर्विदग्ध करता ब. बहुत वर्ष सा०१ श्रामण्य ५० पर्याय ५० पालकर त० उस अ० अर्थ को अ० विना आ० आलोचकर पम्मतिक्रमणकर का०,१४४२ काल के अबसर में का. काल करके अ० अन्यतर दे. देवकिलिपी दे० देव में दे देवकिल्विषीपने उ. उत्पन्न भ० होत हैं ति. नीनं पल्योपम की ठि स्थिति में ति० तीन सा० सागरोपम की ठि० स्थिति में ते.
अबण्णकरा, अकित्तिकरा,बहिं असम्भावुभावणाहि मिच्छत्ताभिनिवेसेहिय अप्पाणंवा परंवा तदुभयंचा वुग्गाहमाणा, वुष्पाएमाणा बहूहि वासाइं सामण्ण परियागं पाउणंति २ त्ता तस्स ठाणस्स अणालोइय पडिक्वंता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु
देवकिन्चिसिएसु देवेसु देवकिन्विसियत्ताए उवउत्तारो भवति तंजहा तिपलिओवमट्टिगोतर! जो आचार्य का प्रतीक, उपाध्याय का प्रतीक, कुल प्रसतीक, गण प्रखनीक, संघ प्रत्यनीक, भावार्य उपाध्याय का अपयश करनेवाला, निंदा करनेवाला, अपकीर्ति करनेवाला व अशुभ साय स आभिनिवेशिक मिथ्यात से स्वतः को, अन्य को व उभय को मिथ्या उपदेश करनेवाला जो होता व बहुत वर्ष साधु की पर्याय पालकर उस स्थान की मालोचना प्रतिक्रमण विना किये काल के अवसर
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी,