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शब्दार्थ तीन सा० सागरोफ्म की ठिः स्थितिवाले दे० देवकिल्पिी प० रहते हैं क कहां भं भगवन् ते तेरह । oreसा सागरोपम की ठि० स्थितिगले दे० देवकिलिकपी १० रहने उपर बं• ब्रह्मदेवलोक की
दि. भी लेनक क लर की है और मा मागगपम स्थितिवाले दे० देवकिल्विषी ५० रहते हैं ।। ९३ ॥ दे देवकिल्विषी भं भगवन् के० किस क कर्म के उदय से दे० देवकिल्विषीपने । उ. उत्तन भ० होते हैं गो. गौतम जे. जो आ० आचार्य प्रत्यनीक उ० उपाध्याय प्रत्यनीक कु• कुल प्रत्यनीक ग० गण प्रत्यनीक सं० संघ प्रत्यनीक आ० आचार्य उ० उपाध्याय के - अ० अपयश बोलने
कहिण्णं भंते! तेरस सागरोवमट्टिईया देवकिब्बिंसिया परिवसति ?गोयमा! उप्पिंबंभलोगस्स कप्पस्स, हिडिं लंतए कप्पे एत्थणं तेरस सागरोक्मट्टिईया देवकिन्विसिया परिवसंति ॥ ९३ ॥ देवकिदिवसियाणं भंते ! केसु कम्मादाणेसु देवकिदिवसियत्ताए उवउत्तारो भवंति ? गोयमा ! जे इमे आयस्यि पडिणीया, उवज्झाय पड़िणीया, :.
कुल पडिणीया, गण पडिणीया संघ पडिणीया; आयरिय उवज्झायाणं : अयसकरा: भावार्थ किल्विषी देंव रहते हैं. अहो भगवन् ! तेरह सांगरोपम की स्थितिवाले किल्विषी देवं कहां रहते हैं ?3
* अहो गौतम ! ब्रह्मलोक की उपर व लंतक देवलोक की नीचे तेरह सागरोपम की स्थितिवाले किलिषी देव 1% रहते हैं ॥ ९३ ॥ अहो भगवन् ! किल्विषी में कैसे कर्म करनेवाले किल्विषी देवपने उत्पन्न होवे ? महा
पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र
20 नववा शतक का तत्तासवा उद्देशा 4.880