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शब्दार्थ ! * {आत्मासे अ० अपक्रमकर ब० बहुत अ० अमत्भाव उ० उद्भावना से मिमिथ्यात्व अ० अभिनिवेश से अ० ( स्वतः का प० अन्यको उ० दोनों को बु० विरुद्ध ग्रहण करता वु० शंकाशील करता व बहुत वा० वर्ष (सा० श्रामण्य १० पर्याय पा० पालकर अ० अर्धमामकी सं० संलेखणा मे अ० आत्मा को झू० झूसकर ती तीस भ० भक्त अ० अनशन छे छेड़कर त० उस ठा० स्थान को अ० विना आलोचना किये प० प्रतिक्रमण किये का० कालके अवसर में का० काल कर के लं० लंतक कल्प में ० ते ० तेरह सा० मागरोपम भिणिवेसेहिय अप्पाणंच परंच तदुभयंच बुग्गाहेमाणे, वुप्पाएमाणे बहूई वासाई सामण्ण, परियागं पाउणइ २ त्ता अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेइ २ ता तीसं भत्ताई अणसणाई छेदेइ २ ता तस्स ठाणस्स अणालोइय पडिक्कते कालमा से कालं किच्चा लंतएकप्पे तेरससागरोवमाई ठिइए देवकिव्विसिएस देवेसु देवकिवि{रुचि नहीं करते दूसरी वक्त भी महावीर स्वामी की पास से नीकल गया. नीकलकर बहुत अशुभ अध्य{वसाय से व विपरीत अर्थ प्रगट करने से आभिनिवेशिक मिथ्यात्वके उदय से अपनी आत्माको, अन्य की आत्मा को व उभय की आत्मा को विपरीत श्रद्धा कराता हुआ बहुत वर्ष माधु पर्याय पालता अर्ध मासकी संलेखना से आत्मा को झोंसकर तीस भक्त अनशन छेदकर उस स्थान की आलोचना प्रतिक्रमण नहीं कर काल के अवसर में कालकर लंतक देवलोक में तेरह सागरोपम की स्थिति से किल्विषी में किलिपी
सूत्र
भावार्थ
पंचांग विवाहपत्ति ( भगवती ) मूत्र
4 नवत्रा शतक का तेत्तीसवा उद्देशा
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