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शब्दार्थ4 तिर्यंच भ० होकर म. मनुष्य भ० होवे म. मनुष्य भ० होकर दे. दव भ० होवे ॥ ८१॥ त० तब
मे० वह ज० जमाली अ० अनगार स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर को ए. ऐमा आ० कहते हुने जा. यावत् प० प्ररूपते ए. यह अर्थ णो नहीं स० श्रद्ध णो० नहीं प० प्रतीत करे णो० नहीं रो० रुचे ए० इस अर्थ को अ० नहीं श्रद्धते अ० नहीं प्रतीत करते अ० नहीं रुचते दो० दूसरी वक्त स० श्रमण भ० भगवन्त म. महावीर की अं० पामसे आ० आत्मासे अ० अपक्रमकर दो० दूमरी वक्त आ०
भवइ, तिरिक्खजोणिए भवित्ता मणुस्से भवई, मणुस्से भवित्ता देवे भवइ ॥ ८९ ॥
तएणं से जमाली अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स एव माइक्खमाणस्स ___ जाव एनं परूवमाणस्स एयमटुं णो मद्दहइ, णो पत्तियइ, णो गेयइ, एयमटुं अम
दहमाणे, अपत्तियमाणे, अरोएमाणे, दोच्चंपि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ
आताए अवक्कमइ, दोचंपि आताए अवक्कमित्ता बहूहिं असम्भावुब्भावणाहि मिच्छत्ताभावार्थ होती है. अहो जमालिन् जीव शाश्वत है क्योंकि यह जीव कदापि नहीं हुआ यावत् नित्य है।
और जीव अशाश्वत है क्यों कि जवि नारकी बनकर तिर्यंच होता है, तिर्यंच बनकर मनुष्य होता है, मनुष्य बनकर देव होता है ॥ ८९ ॥ इस तरह कहते हुवे यावत् प्ररूपते हुवे श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी के वचन की श्रद्धा प्रतीति व रुचि जमाली अनगारने की नहीं. और इस तरह श्रद्धा प्रतीति व
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी पनि श्रा अमोलक ऋषिजी -
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी *