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शब्दार्थ ज० जमाली जो ण नहीं क०कदापि ण नहीं आ हुआ ण नहीं क कदापि ण नहीं भ होता है ण. 2010
aye नहीं क. कदापि भ० होगा भु० था भ० है भ० होगा धु० धृर णि नित्य मा० शाश्वत अ० Yअक्षय अ० अव्यय अ० अवस्थित णिनित्य अ० अशाश्वत लो लोक ज० जमाली ओ० उत्सर्पिणी
भ० है सा० शाश्वत जी० जीव ज. जमाली ण नहीं कः कदापि ण नहीं आ० था जा. यावत् णि नित्य अ० अशाश्वत जी० जीव ज० जमाली णे नारकी भ० होकर ति० लियच भ० होबे ति०,
॥ ८८ ॥ सासए लोए जमाली ! ज णं णकदापि णास णकदापि भवइ णकदापि णभविस्सइ, भुवि च भवइ भविस्सतिय धुवे णितिए सासए अक्खए अन्वए अवट्ठिए णिच्चे ॥ असासए लोए जमाली ! जं ओसप्पिणी भवित्ता उस्सप्पिणी भवइ उस्साप्पिणी भवित्ता ओसप्पिणी भवइ ॥ सासए जीवे जमाली ! जं णकदापि णासि
जाव णिच्चे; असासए जीरे जमाली ! जं जं रइए भवित्ता, तिरिक्ख जोणिए भावार्थ है वैसा मैं नहीं बोलता हूं ॥ ८८ ॥ अहो जमालिन् ! यह लोक शाश्वत है, क्यों की यह कदापि नहीं था
। वैसा नहीं, नहीं होता है वैसा नहीं, नहीं होगा वैसा नहीं, गतकाल में था, वर्तमान में है, व अनागत में |oto होगा; इस से यह ध्रुव नित्य शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित व निस है. और भी यह लोक अशाश्वत है। 1 क्योंकि भरत इरवत आश्री अवसर्पिणी होकर उत्सर्पिणी होती है और उत्सपिणी होकर अवसर्पिणी
ag पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भवगती ) सूत्र *
नववा शतक का तेत्तीसचा उद्देशा