________________
शब्दार्थ |
भावार्थ ।
अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी #
नहीं
भगवन्त गो० गौतम से ए० ऐसा दु० बोलाते सं० शंकित कं० कांक्षित जा० यावत् क० कालुष्य वाला {जा० हुवा णो० नहीं सं समर्थ होवे भ० भगवन्त गो० गौतम के किं० किंचित् पा० उत्तर आ० कहने को तु० मौन सं० रहे ॥ ८७ ॥ जं० जमाली स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर ज० जमाली अ० अनगार ए० ऐसा व बोले अ० है ज० जमाली म० मेरे ब० बहुत अ० अंतेवासी सैं० श्रमण नि० (निग्रंथ छ० छद्मस्थ जे० जो १० समर्थ ए० इस वा० प्रश्न को वा० कहने को ज० जैसे अ० मैं णो ए० इस प्रकार की भा० भाषा भा० कहने को ज० जैसे तु० तुम ॥ ८८ ॥ सा० शाश्वन लो० लोक अणगारे भगत्रया गोयमेणं एवं वृत्तेसमाणे संकिए कंखिए जाव कलुससमाव या होत्या, णो संचाएइ भगवओ गोयमस्स किंचिवि पामोक्ख माइक्खित्तए तुसिणीए संचि ॥ ८७ ॥ जमाली ! समणे भगवं महावीरे जमालि अणगारं एवं वयासी अत्थिणं जमाली ! भ्रमं बहवे अंतेवासी समणा णिग्गंथा छउमत्था जेणं पभू एवं वागणं वारित जाणं अहं । जो चेवणं एतप्पगारं भासं मात्तिए जहाणं तुमं शंका कांक्षा यावत् कालुष्यवाला हुवा और भगवंत गौतम स्वामी के प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ हुआ || ८७ || श्रमण भगवंत महावीर स्वामी जमाली अनगार को ऐसा बोले कि अहो जमालिनू ! मेरे बहुत शिष्य कि जो छद्मस्थ हैं वे भी ऐसे प्रश्नों का उत्तर देने में मेरे जैसे समर्थ हैं. परंतु जैसा तू बोलता |
१४३५