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शब्दार्थ
- पंचमाङ्ग विवाह पणारी (भगवती स्त्र 4.87
केवली के णा० शान दं० दर्शन से० पर्वत से ५० स्थंभ से यू० स्तूप से आढकावे नि० विशेषढकावे ज. यदे तु० तुम ज० जम्गली उ० उत्पन्न णा ज्ञान दं दर्शन ध० धारक अ० अर्हन जि० जिन के० ० केवली भ० होकर के० केवली अ० अपक्रमण से अ०नीकले त तब इ०इन दो दो वा प्रश्न वा कहो सा०१७ शाश्वत लो० लोक ज० जमाली अ० अशाश्वत लो० लोक ज. जमाली सा० शाश्वत जी. जीव ज.. जमाली अ० अशाश्वत जी जीव ज. जपाली ।। ८६ ॥ ततब से० वाज. जमाली अ० अनगार भ.
गोयमे जमालिं अणगारं एवं वयासी णो खलु जमाली! केवलिस्स गाणेवा सणवा सेलंसिवा, थंभंसिवा, थूभंसिवा, आवारज्जइवा, णिवारइजइवा, जइणं तुम्मं जमाली ! उप्पण्णणाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली भवित्ता केवलीअवक्कमणेणं अवकंते ताणं इमाइं दो वागरणाइं वागरेहि, सासए लोए जमाली ! असाप्सएलोए जमाली ?
सासए जीवे जमाली ! असासए जीवे जमाली ? ॥ ८६ ॥ तएणं से जमाली ऐसा बोले कि अहो जमाली ! केवली के ज्ञान दर्शन पे पर्वत, स्तंभ व स्तूप का आवरण नहीं होता है. यदि तू केवली होतो दो प्रश्न का उत्तर कहे. अहो जमालिन् ! लोक शाश्वत है या अशाश्वत है ? अथवा जीव शाश्वत है या अशाश्वत है ? ॥ ८६ ॥ ऐसा भगवंत गौतम स्वामी का वचन सुनकर जमाली ।
नववा शतक का तेत्तीसवा उद्देशा
भावार्थ