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________________ शब्दार्थ को ति० तीन वक्त आ० हस्तजोड ५० प्रदक्षिणाकर बं० बंदनकर ण नमस्कार कर स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर को उ० पाप्त होकर वि० विचरते हैं ॥ ८४ ॥ त• तब से वह ज० जमाली अ.20 अनगार अ० एकदा ता उस रो० रोग से वि• रहित होते ह. हृष्ट तु० तुष्ट जा• हुवा अ. रोग रहित व० वलीष्ट स० शरीर वाला सा श्रावस्ती ण नगरी से को० कोष्टक चे० चैत्य से ५० नीकलकर पु० अनुक्रम से च० चलता गा० ग्रामाणुग्राम दू. व्यतीक्रमते जे. जहां चं० चंपा न० नगरी जे० जहाँ पु० भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं वंदति णमसंति वंदित्ता णमंसित्ता · समणं भगवं महावीरं उवसंगजित्ताणं विहरंति ॥ ८४ ॥ तएणं से जमाली अणगारे अण्णयाकयाई ताओ रोगातंकाओ विष्पमुक्के हट्ट तुट्टे जाए अरोए वलियसरीरे सावत्थीओ णयरीओ कोट्टयाओ चंइयाओं पडिणिक्खमइ २ त्ता पुन्वाणुपुचि चर माणे, गामाणुगामं दूइज्जमाणे, जेणेव चंपाणयरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए जेणेव समणे भावार्थ नमस्कार कर श्रमण भगवंत महावीर की साथ विचरने लगे ॥ ८४ ॥ जब जमाली उस रोग से मुक्त है। हुवा, हृष्ट तुष्ट आरोग्य व बलिष्ट शरीरवाला हुवा तब वह श्रावस्ती नगरी के कोष्टक उद्यान में से नीकलकर of पूर्वानुपूर्वी चलते ग्रामानुग्राम विचरते चंपा नगरी के पूर्णभद्र उद्यान में श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की 1 पास आया, और श्रमण भगवंत की पास खडा रहकर ऐसा बोला कि जैसे आपके अंतवासी बहुत श्रमण, पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती ) सूत्र 3287 नवना शतकका तेत्तीसवा उद्देशा 982030 488
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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