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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
43 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
अनगार का ए० इस अर्थ को स० श्रद्धते हैं प० प्रतीत करते है रो० रुचते हैं ते० वे ज० जमाली अ अनवार को उ० प्राप्त होकर वि० विचरते हैं त० तहां जे० जो स० श्रमण नि० निग्रंथ ज० जमाली अ० | अनगार का ए० यह अर्थ णो० नहीं श्रद्धे णो० नहीं प० प्रतीत करे णो नहीं रो० रुचे ते० वे ज० जमाली अ० अनगार की अं० पास से को० कोष्टक चे० चैस से प० नीकलकर पु० अनुक्रम से चन्चलते गा० ग्रामानुग्राम दू० व्यतिक्रमते जे० जहां चं० चंपा न० नगरी जे० जहां पु० पूर्णभद्र चे० चैत्य जे० जहां स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर ते तहां उ० आकर स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर एयमट्ठे सद्दति पत्तियंति रोयंति तेणं जमालिंचेव अणगारं उवसंपजित्ताणं विहरति तत्थणं जे ते समणाणिग्गंथा जमालिस्स अणगारस्स एयमटुं णो सद्दहंति, णो पत्तियंति, णो रोयंति, तेणं जमालिस्स अणगारस्स अंतियाओं कोट्टयाओ चेइयाओ पडिणिक्खमंत २ ता पुव्वाणुपुविं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जकाणे जेणेव चंपाणयरीए जेणेव पुण्णभद्दए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंत २ त्ता सम वचनों की श्रद्धा प्रतीति व रुवि की वे उन की साथ रहने हुवे विचरने लगे और जिनोंने रुचि नहीं की वे श्रमण निग्रंथ जमाली अनगार की पास कोष्टक चैत्य में से नीकलकर पूर्वानुपूर्वी चलते ग्रामानुग्राम विचरते हुवे चंपा नगरी के पूर्णभद्र चैत्य में श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी की पास आये, और वंदना
* प्रकाशक- राजवहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी
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