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शब्दार्थम० महावीर ज. जमाली अ० भनगार का ए० यह अर्थ जो नहीं ०आदर करे णो नही ५० अच्छा
जाने तु० मौन चि० रहे त० तब से वह ज. जमाली अ० अनमार स० श्रमण भ भगवन्त म० महावीर को दो० दूसरी वक्त तक तीसरी वक्त एक ऐसा व० बोला इ० इच्छताहू भं० भगवन् तु. तुमारी अ०
होते पं० पांच अ० अनगार शत स० साथ जा. यावत् वि०विचरने को त. तब स० श्रमण भ०१ भगवन्त म० महाशर ज जमाली अ० अनगार को दो० दूसरी वक्त त• तीसरी वक्त ए. इस अर्थ को
महावीरे जमालिस्स अणगारस्स एयमटुं जो आढाइ णो परिजाणइ तुसिणीए चिट्ठइ॥ तएणं से जमाली अणगारे समणे भगवं महावीरे दोचंपि तच्चंपि एवं वयासी इच्छायिणं भंते ! तुझेहिं अब्भणुण्णाए समाणे पंचहिं अणगारसएहिं सद्धिं जाब विहरित्तए ? तएणं समणे भगवं महावीरे जमालिस्स अणगारस्स दोचंपि तच्चंपि
एयमढे णो आढाइ जाव तुसिणीए संचिट्ठइ ॥ तएणं से जमाली अणगारे समणं भावार्थ | भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार करके ऐसा बोले कि अहो भगवन् ! आप की आज्ञा होवे
च सो अनगारों सहित बाहिर जनपद विहार विचरने को में वांच्छता हूँ. श्रमण भगवंतने इस बात का आदर किया नहीं वैसे ही अच्छी जाना नहीं परंतु मौन रहे. फीर जमाली अनगारने दुसरी वक्त भी ऐसा कहा कि अहो भगवन् ! आप की आज्ञा से पांच सो अनगार सहित जनपद में विहार करने को में
श्री अमोलक ऋषिजी 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *