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शब्दार्थ *सामायिकादि ए० अग्यारह अं० अंग अ० पढकर व० बहुत च० चतुर्थ छ० छठ अ० अठम जा. यावत् ।
Pos मा० मास अ० अर्धमासक्षमण वि० विचित्र त तप कर्म से अ० आत्मा को भा० भावते वि० विचरने 56 Vलगे ॥ ७३ ॥ त० तब जा जमाली अ० अनगार अ० एकदा जे० जहां स० श्रमण ५० भगवन्त म०३
महावीर ते. तहां उ० आकर स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर को वं. बंदनकर न० नमस्कार कर ए. ऐसा व० बोला इ. इच्छताएं भं भगवन तु• तुमारी अ० आज्ञामिलते पं० पांच अ० अनगार स० शत स० साथ ब० बाहिर ज० अन्यदेश में वि० विहार ति• विचरने को त० तब स० श्रमण भ० भगवंत
२ त्ता, बहूहिं चउत्थ छट्टट्ठम जाव मासद्धमासक्खमणेहिं विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ ७३ ॥ तएणं से जमाली अणगारे अण्णयाकयाई जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ २ ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ २ ता एवं वयासी इच्छामिणं भंते ! तुझेहिं अब्भणुण्णाए समाणे पंचहिं
अणगारसएहिं सद्धिं बहिया जणवय विहार विहरित्तए ? . तएणं समणे भगवं ५०० पुरुषों सहित दीक्षा ली. और सामायिकादि अग्यारह अंग का अध्ययन कर बहुत चतुर्थ, छठ, 26 अष्टम यावत् मास अर्धमास खमण वगैरह विचित्र प्रकार की तपस्या करके आत्मा को भावते हुवे विचरने
लगे॥ ७॥ ॥ फोर जमाली अनगार एकदा श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास. आये और श्रमण
पंचभाङ्ग विवाह पप्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 49
नववा शतक का तत्तसिवा उद्दशा4.
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