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________________ शब्दार्थ पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र APPS मोक्ष १० उत्कृष्ट पद निनिनवरने उ० उपदेशा सिसिद्धिमार्ग को अ अकुटिल है. हणनेवाले प० परीपहर च० शैन्य अ० जीतकर गा० इन्द्रिय कंटक उ० उपवर्ग ध० धर्म में ते• तुम को अ० विघ्न रहित अ०१० होवो ति० ऐसा करके अ० अभिनंदते हैं अ० स्तवते हैं ॥ ६१ ॥ त० तब से० यह ज० अमाली ख.. क्षत्रिय कुमार ण नयनमाला स. सहस्र से पे० देखाते ए. ऐसा ज० जैसे उ० उववाइ में कू. कूणिक जा. यावत् णि जाकर जे. जहां मा० माहण कुंडग्राम, नगर जे० जहां ब० बहुशाल चे० चैत्य त० __ अप्पमत्तो हराहि आराहणपडागंच धीरं तेलोकरंगमज्झे पावय वितिमिर मणुत्तरंच केवलणाणं गच्छय मोक्खं परं पदं जिणवरोवदिटेण सिद्धिमग्गेण अकुडिलेण हता परीसहचमू आभिभविय गामकंटकोवसग्गाणं धम्मे ते अविग्घमत्थुत्तिकटु अभिणंदंतिय अभित्थुणंतिय॥६९॥ तएणं से जमाली खात्तयकुमारे गयणमालासहस्सेहिं पेच्छिजमाणे एवं जहा उववाइए, कणिओ जाव जिग्गच्छइ २ त्ता, जेणेव माहणकुंडग्गामे धन पताका ग्रहण करो. अहो धीर पुरुष ! तीन लोक की मध्य में तिमिर रहित अनुत्तर केवल ज्ञान को प्राप्त करो, मोक्ष रूप परम पद को प्राप्त करो. जिनवरोपदिष्ट अकुटिल सिद्धि मार्ग से परिषह रूप सेनाका नाश करके इन्द्रिय प्रतिकूल उपसगों का नाश धर्म में अविघ्नकारक होगा; ऐसा करके अभिनंदन करनेलगे स्तुति करने लगे ॥ ६१ ॥ हजारों मनुष्यों से देखाते हुवे वगैरह उबवाइ सूत्र में जैसा कुणिक का वर्णन 8428 नववा शतक का तेत्तीसवा उद्देशा भावार्थ 4.
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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