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शब्दार्थ
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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
पामो ध० धर्म से त० तप से भ० भद्र होवो ते० तेरा अ० अभग्न णा० ज्ञान दं० दर्शन च० चारित्र उ०* उत्तम मे अ० अजित जि० जयपामो इं. इन्द्रियों को जि. जिता पा० पालो स. श्रमण ध० धर्म जि० जित वि० विघ्न सा० वश दे० देव सिं• सिद्धि मार्ग में नि० क्षयकरो रा० राग दो द्वेष म० मैल तक तप से घि० धृति ध० धनिक ब. बद्ध क० कक्षा म० मर्दनकरो अ० आठ कर्म शत्रु झा० ध्यान से उ. उत्तम सु० शुक्ल से अ० अप्रमत्त ह. ग्रहण कर आ० आराधना ५० पताका धी० धीर ते. त्रैलोक्य २० रंग म० मध्य में पा० प्राप्त करो वि० तिमिर रहित अ० अनुत्तर के० केवल ज्ञान ग. जावो मा०
जयणंदा भदंतेअभग्गेहिं णाणदसणचरित्तमुत्तमहिं आजियाइं जियाहि इंदियाई जितं पालेहि समणधम्मं जियविग्घोवियवसाहिय देव सिडिमझे, निहणाहि राग
दोस मल्ले तवेणं धिइधणियबद्धकच्छे महाहि अट्ठकम्मसत्तू झाणणं उत्तमेणं सुक्केणं कुंड नगर की मध्य में होकर नीकलते श्रृंगाटक त्रिक चौक यावत् राजमार्ग में उन को अभिनंदन देने के लिये बोले कि धर्म से जय जय आनंद वर्तो' 'तप से जय जय आनंद व?' अभग्न ज्ञान दर्शन चारित्र से जय जय आनंद होवो. 'अजेय इन्द्रियों को जीतो' 'जीता हुवा श्रमण धर्मका पालन करो' सब प्रकार के विघ्नों को जीतो, देव अथवा सिद्धि में निवास करो, तप से राग द्वेष रूपी मेल दूर करो, धृति से रूप धन के लिये कांक्षा करो, उत्तम शुक्ल ध्यान से अप्रमत्तपने अष्ट कर्मों का मर्दन करो, और आरा-10
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* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ