________________
शब्दार्थ
११ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी ।
सन्मुख लीया हुवा भिं० गार प० लीया हुवा ता. वीजना ऊं• ऊंचा किया से० श्वेत छत्र प० वींजाता * से० श्वेत चामर बाल वीवींजना से स० सर्व ऋद्धिसे जा. यावत् णा वादिंत्र र० शब्द से ॥ ६७ ॥ त० बहुत ल० यष्ठिवाले कुं. भाला वाले जा. यावत् पु० पुस्तक वाले जा० यावत् वी० वीणा वाले त०१ पीछे अ० आठ स० शत ग. गज तु० अश्व अ० आठ सं० शत र रथ त० पीछ ल लकुड अ० असि को० खग ह० हस्त में ३० बहुत पा० पदात्य पु० आगे • चलनेलगे त० पीछे ब. बहुत रा० राजेश्वर
खत्तियकुमारे अभुग्गभिंगारे परिग्गाहियतालियंटे ऊसाविय सेयछत्ते, पवीइयसेय चामरवाल वीयणीए, सव्विड्डीए जाव णाइयरवेणं ॥ ६७ ॥ तयाणेतरंचणं बहवे लट्ठिग्गहा कुंतग्गहा जाब पुत्थियग्गहा जाव बीणग्गहा; तयाणं तरंचणं अटुसयं गयाणं अट्ठसयं तुरियाणं अट्ठसयं रहाणं।तदाणंतरंचणं लउड आसिकोतहत्थाणं बहणं पायत्ताणीणं पुरओ संपा?या ॥ तयाणंतरंचणं बहवे राईसर तलवर जाव सत्थवाहप्पभियओ पुरओ *गार उठाकर चलते हैं, कोई तालत विजणा लेकर चलते हैं कोई छत्र ऊंचाकर चलते हैं यो सब ऋद्धिगुक्त यावत् वादित्रों के घोष करते हुवे जाते हैं ॥ ६७ ॥ तदनन्तर बहुत लाष्टि लेकर चलनेवाले बहुत भालां लेकर चलनेवाले पुस्तकों लेकर चलनेवाले यावत् वीणावाले आगे रहत हैं. तदनन्तर एक सो आठ हाथी, एक सो आठ घोडे, एक सो आठ रथ, एक सो आठ लकुटधारी, एक सो आठ खड्गधारी, एक
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुवदेवसहायजी पालाप्रसादजी *
भावाथ