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शब्दार्थ क्षत्रिय कुमार का पि• पिता को कौटुम्बिक पु०पुरुष को वोलाकर ए०ऐसा व०वोला खि०शीघू दे० देवा
नुपिय स० सरिखे स० सरिखी त्वचा वाले स० सरिखीवय वाले म सरिखा ला० लावण्य रू० रूप जो १७ यौवन गु० गुणयुक्त ए. एक आभरण व० वस्त्र प्र. ग्रहेहुवे नि० सहचारी को कौटुम्बिक व० वरतरुण
स. महस्र स० बोलावो तक तब ते वे को० कौटुम्बिक पुरुष जा. यावत् प० सूनकर खि० शीघू स. TE सरिखे जा. यावत् स० बोलाये ॥ ६० ॥ त तब ते वे को. कौटुम्बिक पुरुष ज० जमाली ख क्षत्रिय में कुमार के पि० पिता से वु० बोलाये हुवे हा हृष्ट तु. तुष्ट हा० स्नान किया का बलीकर्म कीया क०
मेव भो देवाणुप्पिया सरिसयं सरित्तयं सरिव्वयं सरिसलावण्णरूवजोव्वणगुणोववेयं ____एगाभरणवसणगहिय निजोयं कोडुंबियवरतरुणसहस्सं सहावेह तएणं ते कोडुबिय ६ पुरिसा जाव पडिसुणेत्ता खिप्पामेव सरिसयं जात्र सदाति ॥ ६ ॥ तएणं ते
कोडंबिय पुरिसा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिउणा कोडुपिय पुरिसेहिं सहाविया
समाणा हट्ट तुट्ठा व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगल पायच्छित्ता एगाभरण भावार्थ यौवन व एक सरीखे आभरणवाले एक हजार पुरुषोंको बोलावो. तब कौटुम्विक पुरुष ऐसे बचन सुनकर शीघ्र
सरीखी पयवाले यावत् बोलाये ॥ ६ ॥ वे पुरुषों उन कौटुम्भिक पुरुषों का वचन सुनकर हृष्ट तुष्ट यारत् आनंदित हुए, लान किया, कोगले किये, तिलमसादिक किये, और एक आभरण व वस्त्र धारन -
488 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) मूत्र 8804
23 नववा शतकका तेत्तीसवा उद्देशा8-48001