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4 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी -
जमाली ख० क्षत्रिय पुत्र की ७० ईशान कौन में ए० एक प० वरतरुणी सिं० श्रृंगाराका जा. यावत् ।
• कलित र० रजनमय वि. विमल स० पानी मे पूर्ण म. मत्तगज म० बडामुख की आ० आकृति समान मि० पात्र को ग० ग्रहण कर चि. खडीरही ॥५८ ॥ त० तब तक उन ज. जमाली ख० क्षत्रिय कुमार की दा० अग्निकौन में ए० एक व० वरतरुणी सिं० श्रृंगाराकार जा. यावत् क • कलित चि० चित्र क० कनक दंडवाला ता० वींजना ग० ग्रहणकर चि. खडीरही ॥५९॥ त० तब तक उन ज. जमाली ख०
लिस्स खात्तियकुमारस्स उत्तर पुरच्छिमेणं एगावरतरुणी सिंगारागार जाव कालिया सेतं रययामयं विमलसालिलपुण्णं मत्तगय महामुहाकिइसमाणं भिंगारं गहाय चिट्ठइ ॥५८॥ तएणं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स दाहिणपुरच्छिमेणं एगावर तरुणी सिंगारागार जाव कालया वित्त कणगदंडं तालपटं गहायचिटुइ॥५९॥तएणं तस्स जमा
लिस्स खत्तियकुमारस्स पिया कोडुबिय पुरिसे सहावेइ २ त्ता एवं वयासी खिप्पाईशान कौन में श्रृंगार का गृह यावत् कलित एक श्रेष्ट तरुणी रत्नमय, बहुत पानी से परिपूर्ण व मत्तवाला हस्ती के मुख समान आकारवाला एक कलश लेकर बैठी ॥ ५८ ॥ जमाली क्षत्रिय कुमार की अग्नि कौन में श्रृंगार का घर यावत् कलित एक तरुणी विचित्र प्रकार का सोने का दंडवाला पंखा लेकर बैठी ॥ ५९ ॥ फोर जमाली कुमार के पिताने कहा कि अहो देवानुप्रिय ! सरिखी वय, त्वचा, लावण्य, रूप,
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहावजी ज्वालाप्रसादजी *
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