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शब्दार्थ
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पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भवगती ) सूत्र
चि० खडीरही ।। ५६ ॥ त० तब तक उन ज० जमाली ख. क्षत्रिय कुमार की उ० दोनों बाजु दु. दो व० बरतरुणी सिं० शृंगार के गृह चा० मनोहर जा० यावत् क० नेत्रवाली ना० विविध म. मणि कoore कनक र० रत्न वि० विमल म० वहुत मूल्य त• तपनीय ज० उज्वल वि० विचित्र दं. दंड से चि० देदी-X घमाम सं० शंख अं० अंक कु० कुन्ददकरज अ० अमृत मथित फे० फेन पुं-पुंज स०सरिखे छ० सफेद चा. चामर ग० ग्रहण कर स० लीला सहित वी. वीजती वि० खडीरही ॥ ५७ ॥ त० तब तक उन ज०
गहाय सलीलं उवधरेमाणी२चिट्ठइ॥५६॥तएणं जमालिस्स उभओ पासिं दुवे वरतरुणीओ सिंगारागार चारु जाव कलियाओ णाणामाणकणगरयणविमलमहरिहतवणिज्जुज्जल विचित्तदंडाओ चिल्लियाओ संखककुंददगरयमियमाहयफेणपुंजसण्णिगासाओ धवलाओ
चामराओ गहाय सलीलं वीयमाणीओ वीयमाणीओ चिटुंति ॥ ५७ ॥ तस्स जमाश्वेत आर्तपत्र धारन कर लीला सहित शांत रही हुई है ॥ ५६ ॥ जमाली की दोनों बाजु श्रृंगार के घर यावत् कलित दो तरुणियों अनेक प्रकार के मणि, कनक, रत्नमय, निर्मल, बहुमूल्यवान, तपनीय, उज्वलकान्तिवाले, विचित्र दंड युक्त. दोष रहित, शंख, पानी का परपोटा, अमृत व मन्थन किया हुवा पानी का फेन पुज समान चामर को धारन कर लीला सहित वीजती हुई बैठी है ॥ ५७ ॥ उस जमाली क्षत्रिय की ।
नववा शतक का तेत्तीसत्रा उद्देशा
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