________________
शब्दार्थ14. प्रदक्षिणा करती सी० शिविकापे दु० चढकर ज० जमाली ख. क्षत्रिय कुमार की वा० बायीं बाजु *
भ० भद्रासनसे स० बैठी ॥ १५ ॥ त० तब तक उन ज. जमाली ख० क्षत्रिय कुमार की पि० पीछे ए. एक व० श्रेष्ठ तरुणी सिं० भंगार आ० गृह चा• अच्छा वेशनाली सं० संगत जा. यावत् रू०रूप जो० यौवन वि० विशाल क. नेत्रवाली मुं० सुंदर ५० स्तन हि० सुवर्ण र० चांदी कु० कुमुदवृक्ष इ० इन्दु समान स० कोरंटक मा० माला ५० श्वेत आ० आतपत्र ग० ग्रहण कर स० लीला सहित ध० धारन करती दाहिणी करेमाणी सीयं दुरूहइ २ ता, जमालिस्स खत्तियकुमारस्स वामे पासे भद्दासणवरंसि सण्णिसण्णा ॥ ५५ ॥ तएणं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिटुओ एगावरतरुणी सिंगारागारचारवेसा संगय जात्र रूवजोव्वण विसाल कलिया, सुंदरथणहिमरयय कुमुदकुंदेंदुप्पगासं सकोरंटमल्लुदामं धवलं आयवत्तं
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
लंकार धारन कर रजोहरण, पात्र लेकर शिविका को प्रदक्षिणा करके शिविका में आरूढ होकर वायें तरफ भद्रासन से बैठी ॥ ५५ ॥ फीर जमाली क्षत्रिय कुमार की पृष्ट भाग में एक उत्तम तरुणी शृंगार रस के गृह समान अच्छे वेष धारन करनेवाली विचक्षण रूप यौवन व विशाल नेत्र की धारक, सुंदर, स्तन युक्त, सोनेरी रुपेरी कमल, चंद्र विकासी कमल, कुमुद कुसूम व चंद्र समान तेजस्वी, कोरंट वृक्ष की माला युक्त है।