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शब्दार्थ सी. सिंहासनपे पु० पूर्वतरफ स० बैठा ॥ ५३॥ त० तब तक उन ज० जमाली ख० क्षत्रिय कुमार की .. |१०मा० माताने हा० स्नान किया जा० यावत् सःशरीर हं हंस जैसा १० वस्त्र ग० ग्रहण कर मी शिविका 20
को अ० प्रदक्षिणा करती सी० शिविका दु० चढकर ज जमाली ख० क्षत्रिय कुमार की दा० दक्षिण : बाजु भ० भद्रासनसे स. बैठी ॥ ५४ ॥ त० तब उ० उस ज जमाली ख० क्षत्रिय कुमार की अ० अम्बा धा धात्री हा स्नान किया जा यावत् सशरीरवाली र रजोहरण पपात्र ग लेकर सी पालखीको
२ ता सीहासणवरंति पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे ॥ ५३ ॥ तएणं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स माया ण्हाया जाव सरीरा हंसलक्खणं पडसाडगं गहाय सीयं अणुप्पदाहिणी करेमाणी सीयं दुरूहइ २ त्ता, जमालिस्स खत्तियकुमारस्स दाहिणेणं पासेणं भद्दासणवरंसि सणिसण्णा ॥ ५४ ॥ तएणं तस्स जमालिस्स खत्तिय
कुमाररस अम्मध तो व्हाया जाव सरीरा रयहरणं पडिग्गहंच गहाय सीयं अणुप्पभावार्थ आरूढ होकर पूर्वाभिमुख से बैठे ॥ ५३ ॥ जमाली की माता भी स्नान करके यावत् सर्वालंकार से विभू
७षित बनकर हंस समान श्वेत वस्त्र महित शिविका को प्रदक्षिणा कर, उस में अरूढ होकर जमाली क्षत्रिय 1 कुमार की दक्षिण बाजुपर भद्रासन से बैठी ॥ ५४॥ फीर जमाली की धायमाता स्नान करके यावत् सर्वा
पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 4११
नववा शतक का तेत्तीसवा उद्देशा8948
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