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शब्दार्थ, पु० पुरुष स. सहस्र से वा० लेने योग्य सी० शिविका उ० तैयार करो उ० तैयार करके म० मेरी आ०.
आज्ञा प० पीछीदो त० तब से वे को कौटुम्बिक पुरुष ना० यावत् प० पीछीदेवे ॥५२॥ त. तब से वह ख० क्षत्रिय कुमार के केश अलंकार से व० वस्त्र अलंकार से म. माला अलंकार से आ० आभरण अलंकार से च० चार प्रकार के अ० अलंकार से अ० अलंकृत हुवा प० पूर्ण अलंकार वाला हुवा सी. सिंहासन से अ• उठकर सी० शिविका को अ० प्रदक्षिणा करता मी० शिक्षिका में दु० चढकर
उवट्ठवेह उवट्ठइवेत्ता, मम एय माणत्तियं पञ्चप्पिणह · तएणं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पञ्चप्पिणंति ॥ ५२ ॥ तएणं से खत्तियकुमारे केसालंकारेणं, वत्थालंकारेणं मल्लालंकारेणं, आभरणालंकारेणं, चउविहेणं अलंकारेणं अलंकारिएसमाणे पाडे. पुण्णालंकारे सीहासणाओ अभुटेइ २त्ता सीयं अणुप्पदाहिणी करेमाणे सीयं दुरूहइ हुई, अनेक क्रीडा करनेवाली पुतलियों से मंडित, जैसे रायप्रसेणी सूत्र में विमान का वर्णन कहा वैसे ही यावत् मणिरतों की घंटिकाओं की जालि से वेष्टित एक हजार पुरुष उठा मके ऐसी पालखी तैयार कर लावो और मुझे मरी आज्ञा पीछी देदो. कौदाम्बिक पुरुषोंने अ'ज्ञा अनुतारकार्य करके उनको उनकी आज्ञा पीछी दे दी ॥५२॥ फीर क्षात्रय कुगर केशालंकार, वस्त्रालंकार, माल्यालंकार व आभरणालंकार इन चार अलंकार से अलंकृत बनकर सिंहासन से उपस्थित हुए और शिविका को प्रदक्षिणा देकर उस में
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
फ-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी *